Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

“धर्म अब इंसानियत हो”

 


देश के कण कण से औ’ जन जन से मुझको प्यार है
देह न्यौछावर हैं इस पर आत्मा बलिहार है,

शुक्रिया प्रभु आज तेरा जन्म पाया है यहाँ
प्रीति के बंधन यहाँ पर कर्म का अधिकार है

आओ दे दें हाथ में हर एक बच्चे के कलम
मुश्किलों में साथ देती हर कलम तलवार है,

दुश्मनी को दूर रखना दोस्ती दिल में रहे
दूरियां दिल की मिटाने आ गया किरदार है,

खूबसूरत ये धरा है आओ सींचें प्यार से
इन्द्रधनुषी रंग इसके बाग वन श्रृंगार है,

जाति मज़हब भूलकर हम सबको अपना मान लें
धर्म अब इंसानियत हो प्रीति की दरकार है,

आओ नेताओं से पूछें आत्मा उनकी कहाँ
बेचने को क्या बचा है कौन सा व्यापार है,

देश बाँटा प्रांत बाँटे बाँट डाले घर सभी
बाँटकर अब राज ना कर दोमुखी सरकार है,

हाथ में अब शिव धनुष है लाल आँखें हो गईं,
दूर कर आतंक जग से कह रही टंकार है.

आओ चुन लें राह ऐसी देश सेवा में रहें
ये तिरंगा ही कफ़न हो स्वप्न यह साकार है,

मान अब घटने न पाये शान बढ़ती ही रहे
देख आया पास अब गणतंत्र का त्यौहार है,

Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ