नशा
राग भूप सारंग ताल दादरा
नशा को हटाईए, तभी संतुष्ट जीवन है।
निज को संवारिए, तभी संतुष्ट जीवन है।।
यह नशा नाश ,करने का नुख्सा है,
यह जिंदगी ,बर्बादी का किस्सा है।
सादगी अपनाईए ,तभी संतुष्ट जीवन है।।
नशा नरक है, और यही सबक है,
नशाबाजों हेतु, हानिकारक है।
संतो को मानिए, तभी संतुष्ट जीवन है।।
नशाबाजों से ,आदत लगता है,
मरते दम तक यह ,आदत रहता है।
मन बचाए रखिए, तभी संतुष्ट जीवन है।।
आत्मज्ञान का, नशा लगाना चाहिए,
ध्यान में ईश को , लगाना चाहिए।
"कपिल "खुद आजमाइए, तभी संतुष्ट जीवन है।।
कपिल देव कृपाला भागलपुर बिहार निवासी मौलिक रचना स्वरचित
Powered by Froala Editor
LEAVE A REPLY