Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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ना मक़्ता मानते है....ना मतला मानते है

 

ना मक़्ता मानते है....ना मतला मानते है
जो दिल में आती है उसे बतला मानते है

 

 

तेरे अंदाज़ विपुल उस मगरूर से लगते है
जो अनसुनी कर ख़ुद को पतला मानते है

 

 

कुछ भी और हमे....भाता नही है दोस्तों
यार की ख़बर काम की इत्तेला मानते है

 

 

प्यार करना हमे आज तक आया नही
कि चाहतों को सरे राह् जतला मानते है

 

 

अती ये कि हम जिन्हे अबला मानते है
वो हसीन दरअसल हमे पगला मानते है

 

 

राहे इश्क में बेलते रहते है पापड़ रोज़
यार दिख जाए तो पापड़ तला मानते है

 

 

हुस्न के नहले पे दूँ शायरी का दहला
पर मेरे दहले को भी वो नहला मानते है

 

 

यही तो ख़ास बात है शाय्ररो के साथ
उनकी नजरों की बात को कहला मानते है

 

 

वो भी जानते है हमारी दीवानगी को
मै देखता हूँ तो मेरा दिल उछला मानते है

 

 

मिलते ही नजर वो मुस्कुरा देते है
अपने चिकने हुस्न पे फिसला मानते है

 

 

ज़माना-ए-बेवफ़ाई हम भी ढल लिए विपुल
कि हर नये प्यार को हम पहला मानते है ...........विपुल त्रिपाठी

 

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