Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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खत्म जब........चुनावी मस्ती हो गई

 

खत्म जब........चुनावी मस्ती हो गई
अपने आप फिर सब्जी सस्ती हो गई

 

के सोच था जहाँ निकलेगा कमल
देखा तो वहाँ....झाड़ू की बस्ती हो गई

 

बहुत चला ली आलाकमान बाजी
महँगी अब की ये मटर गश्ती हो गई

 

जो सोच रहे थे हवाये बदलेंगी नही
उनके नसीबों की हालत पस्ती हो गई

 

कल्चरल शॉक से उबार नही पा रहे
उनको लगता है ये ज़बरदस्ती हो गई..........विपुल

 

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