Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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हम थे दम था गम था

 

हम थे दम था गम था
फिर शायरी क्यों ना होती.....

 

तुम थी कि क्या कम था
फिर शायरी क्यों ना होती.....

 

कि सर्दी का मौसम था
फिर शायरी क्यों ना होती.....

 

मुझको बड़ा भरम था
फिर शायरी क्यों ना होती.....

 

एह्सासो का चरम था
फिर शायरी क्यों ना होती.....

 

उनका नजरे करम था
फिर शायरी क्यों ना होती.....

 

माहौल ही गरम था
फिर शायरी क्यों ना होती.....

 

उनका हया-शरम था
फिर शायरी क्यों ना होती.....

 

दुखों का झमाझम था
फिर शायरी क्यों ना होती.....

 

कि महफिल में शम्म था
फिर शायरी क्यों ना होती.....

 

मेरा सुभाव नरम था
फिर शायरी क्यों ना होती.....

 

दिल में कि एक बम था
फिर शायरी क्यों ना होती...

 

मैं था मेरा गम था
फिर शायरी क्यों ना होती.....

 

मुझमें अभी दम था
फिर शायरी क्यों ना होती.....

 

'विपुल' अकल का कम था
फिर शायरी क्यों ना होती.................विपुल

 

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