Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

मलाल

 

उस आतंकवादी हमले के बाद की वो एक खामोश सुबह

सुबह कहना तो औपचारिकता है ,

ज़मीं पर अभी भी अँधेरा बिखरा पड़ा था

समां कुछ लाल था

उसे भी उन जानों के खोने का मलाल था ,

 


धर्म के मायने बदल गये थे ;

दो मुल्कों के नाते बदल गये थे

मन्त्रों और आयतों को भी ,

अपनी ही ग़लत व्याख्या पर नाराजगी थी

बीच में ही अटकी जो शान्ति वार्ता बाकी थी ,



पर उस घोर अँधेरे में भी वतनपरस्त जवान

रोशनी की सौगात थे ;

उस दिन अपनी साँसे आखिरी लेने वाले

वतन के लिए गर्व की बात थे



पर एक हमला कितनों को यतीम कर जाता है ,

यह कोई अखबार या कोई आंकड़ा कहाँ बता पाता है ,

वही खिलाफत की गोली कितनों पर चली थी ,

पर हकीकत तो यह है कि

उस दिन संवेदना भी मरी थी .




-विभूति चौधरी

 

Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ