Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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पूरी बेशर्मी के साथ

 

आपको शर्म नहीं आती?
किसी के घर की
ज्वलनशीलता के परीक्षण को
आप किसी का घर जलाना कहते हैं!

 

कहते हैं
उसने शर्म की बात से
शुरू की बात
पूरी बेशर्मी के साथ।

 

कितनी शर्म की बात है?
कितनी काली रात है?

 

उसकी आँखों में
शैतानी तेज़ था,
इसलिए उसकी आँखों में
नहीं थी
शर्म की गुंजाइश।

 

अब जिसे शर्म आए
वह झुकाता फिरे
शर्म से अपना सिर,
उसकी बला से।

 

उसे तो अभी
न जाने कितने
जलाने हैं घर,
छुआना है पलीता।

 

वह यदि बैठ जाएगा
शर्म से झुकाकर सिर
तो कौन पूरे करेगा
शैतान के मनसूबे?

 

शर्म के सागर में
जो तैर नहीं पाए
मरे तो मरे!
डूबे तो डूबे!

 

इससे पहले
कि कोई उस पर चलाए
शर्म का तीर,
वह ही चला देता है,
और पूरी बेशर्मी के साथ
बढ़ जाता है आगे
अगले घर की ओर।

 

उसके सामने
अभी बहुत काम पड़ा है।

 

छलक-छलक पड़ता
उसका पाप का घड़ा है।

 

 

 

ठाकुर दास 'सिद्ध',

 

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