Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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ख़्वाब कोई इधर का रुख़ करता

 

(ग़ज़ल) ठाकुर दास 'सिद्ध'

 

 

दर्द का कुछ असर नहीं होता।
दर्द होता है पर नहीं होता।।

 

याद अपनी उसे नहीं आती।
इतना तो बेख़बर नहीं होता।।

 

लोग होते न याँ दरिंदे गर।
रास्ता पुरख़तर नहीं होता।।

 

जो न घर पर ये आसमाँ गिरता।
आदमी दर-ब-दर नहीं होता।।

 

रोज़ होते हैं याँ महल रोशन।
एक अपना ही घर नहीं होता।।

 

हौसला साथ गर नहीं देता।
ये अकेले सफ़र नहीं होता।।

 

ख़्वाब कोई इधर का रुख़ करता।
दर्द गर रात भर नहीं होता।।

 

'सिद्ध' दुश्मन खड़ा नहीं रहता।
या कि अपना ये सर नहीं होता।।

 

 

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