Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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हार में मैंने नगीने से लगाए

 

हार में मैंने नगीने से लगाए।
तीर उसके यार सीने से लगाए।।

 

चेहरा उसका नज़र आने लगा है।
ज़ख़्म सीने पर क़रीने से लगाए।।

 

इंतज़ारे-यार में ये वक़्त ज़ालिम।
बीतने में दिन, महीने से लगाए।।

 

जश्न है उस पार लेकिन हम यहाँ हैं।
पार कोई ना सफ़ीने से लगाए।।

 

आरज़ू शायद नुमाइश की रही हो।
'सिद्ध' पर्दे उसने झीने से लगाए।।

 

 

 

ठाकुर दास 'सिद्ध'

 

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