Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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हज़ारों दफ़ा कह चुका हूँ लुटा हूँ

 

• हज़ारों दफ़ा कह चुका हूँ लुटा हूँ
• मैं जब हाथ अपने लगा हूँ लुटा हूँ

• ख़ुदा तक दुआएँ यक़ीं है गयी हैं
• दुआ करके जब भी उठा हूँ लुटा हूँ

• फसादों के चौराहे से वो ये बोला
• न मंदिर न मस्ज़िद ख़ुदा हूँ लुटा हूँ

• जहाँ खाबों की भीड़ हर मोड़ पर है
• मैं ऐसे पहर पे खड़ा हूँ लुटा हूँ

• कटा है महीना मेरा चाँद जैसे
• बढ़ा हूँ घटा हूँ बना हूँ लुटा हूँ

• करूँगा मैं आगे से खुद पे भरोसा
• तुम्हारे भरोसे रहा हूँ लुटा हूँ

• अँधेरों ने जब हार मानी ज़िया से
• मैं उस रोज़ का इक दिया हूँ लुटा हूँ

• रही आँच जब तक मैं ‘आतिश’ रहा हूँ
• वगरना धुँए सा उठा हूँ लुटा हूँ

 

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