Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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चढ़ते-चढ़ते आज दरिया रह गया

 

• चढ़ते-चढ़ते आज दरिया रह गया
• साहिलों पर ही उमड़ता रह गया

• खुद से आगे वो निकल पाया नहीं
• इसलिए पहले का पहला रह गया

• था अजब तुम थे कि हँसते ही रहे
• और मैं हैरान होता रह गया

• ये सभी परछाईयाँ कहती हैं कि
• धूप के भीतर अँधेरा रह गया

• घर को मैं तब ही समझ पाया कि मैं
• जब कभी घर में अकेला रह गया

• बुझ गया जल कर खयाले-यार भी
• हाँ मगर मन में उजाला रह गया

• उसने आने को कहा था एक दिन
• और वो दिन है कि आता रह गया

• वो गया तो ले गया आकाश भी
• मन के पिंजरे में परिंदा रह गया

• आँच ‘आतिश’ की न कम हो इसलिए
• दुख का इक शोला था, जलता रह गया

 

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