Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

कुछ शे'र

 

ख़ुदा कुछ तो मेरे मनका होता ।
या मैं उनसा या वो मुझसा होता

************************

इश्क़ हर दिल को हुआ रहता है
शायद ही कोई अनछुआ रहता है

************************

खत में तेरा नाम ओ जफ़ा लिखकर
लिखा मिटाया हर दफा लिखकर

************************

अच्छा ही हुआ सवाल जवाब करके
उसे घाटा लगा मुझसे हिसाब करके

***********************

मुझको फ़कत प्यारे, मेरे अपने उसूल हैं
ऐसे में मेरे लिये, तेरी ये शर्तें फिज़ूल हैं

***********************

दर्द की मय, दवा होती है हुआ मालूम
मैख़ाने में मिले, कितने टूटे दिल मासूम

***********************

किसी की चाह ने मुझको ऐसा सबक दिया
अब चाह कर भी किसी और को चाह नहीं सकता

**********************

सफर में लेकर गये सामान इतना
ढोते ढोते कंधा हुआ कुर्बान इतना

***********************

जब से मशहूर हो गया
बहुत मग़रूर हो गया

खामियाँ कितनी गिनायें
बड़ा बेसऊर हो गया

***********************

जितनी जवानी में मज़ा आता है !
उतना ही बुढ़ापा सज़ा लाता है

***********************

उस बुत की क्या नक्काशी है !
एक कलाकार की अय्याशी है !!

***********************

हर उस नज़र से नज़र नही आता
मुहब्बत में कुछ नज़र नही आता

************************

कौन कहता तनहाई अच्छी नहीं होती
ख़ुद से मिलने का ये बड़ा अच्छा मौका है

************************

कुछ रातें हैं आवारा, कुछ यादें हैं आवारा
जो रोज चली आती हैं तनहाई में आवारा

************************

आइना मुझसे पूछे है कौन है तू
छोटे से सवाल पर क्यूँ मौन है तू

 

 

सुनील मिश्रा "साँझ"

 

Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ