Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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सेदोका

 

बहता वक्त
कैलेंडर में दर्ज
कितनी ही तारीखें
प्रतीक्षारत
सुनहरे सपने
आशा भरा आकाश।


वेदना नहीं
संवेदना थी कहीं
लंबी सी जिंदगी में
दूरियां बढ़ी
बोलने लगीं अब
हमारी खामोशियाँ।

 

मन दर्पण
नया बिम्ब उभरा
खुद को तलाशता
ढूंढता फिरे
खुद की परछाईं
अंतस अँधेरे में।

 

 

सुशील शर्मा

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