Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

मैं और मेरी धरती

 

(पृथ्वी दिवस पर विशेष)
सुशील शर्मा

 

 

 

पृथ्वी मेरी माँ की तरह
चिपकाए हुए है मुझे
अपने सीने में।
मेरे पिता की तरह
पूरी करती है मेरी
हर कामनाएं।
पत्नी की तरह
मेरे हर सुख का ख्याल
उसके जेहन में उभरता है
बहिन की मानिंद
मेरी खुशी पर सब निछावर करती
भाई की तरह
मेरे हर कष्ट को खुद पर झेलती
बेटी की तरह
मेरे घर को खुशबुओं से
करती सरोबोर
पृथ्वी एक नारी की प्रतिकृति
झेलती हर कष्ट
अपनों के दिये हुए दंश
लुटती है अपनों से
उसके बाद भी उफ नही
रुक जाओ दानवों
मत लूटो इस धरा को
जो देती है तुमको
अपने अस्तित्व को जीवनदान
पर्यावरण को सुधारो।
नदियों को मत मारो
जंगलों पर आरी
खुद की गर्दन पर कटारी
पॉलिथीन का जंगल
छीन लेगा तुम्हारा मंगल
वाहनों की मीथेन गैस
छीन लेगी तुम्हारी जिंदगी की रेस
अरे ओ मनुज स्वार्थी
प्रकृति और पृथ्वी से तू जिंदा है
क्यों न तूं अपने कर्मों से शर्मिंदा है
भौतिकता का कर विकास
मत कर खुद का विनाश।
कर इस धरती को सजीव
बन पृथ्वी का शिरोमणि जीव।

 

 

सुशील शर्मा


Comments

Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ