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आप भी टेलीपैथी से दूर संवाद कर सकते हैं

 

सुशील कुमार शर्मा

 

टेलीपैथी शब्द दो शब्दों का मिश्रण है 'टेली ' यानि दूरी एवं 'पैथी 'यानि भावनायें। टेलीपैथी को अगर हम परिभाषित करें तो वह मानसिक शक्ति जिसके द्वारा बिना पांच इन्द्रियों का प्रयोग किये दो मस्तिष्कों के बीच संवाद स्थापित करना है। टेलीपैथी एक मस्तिष्क आधारित मनोवेग है जो हर जीवित प्राणी में निहित होता है किन्तु यह मनुष्य के अवचेतन मस्तिष्क में होता है अतः यह शक्ति हर किसी में जाग्रत नहीं होती है। टेलीपैथी के द्वारा आप दूसरों तक अपने विचार, भावनायें ,सम्वेदनायें यंहा तक की मानसिक चित्रण को भी सम्प्रेषित कर सकते हैं। टेलीपैथी से आप मनुष्य ,जानवर ,पक्षी एवं पेड़ पौधो से संपर्क स्थापित कर उनके अंदर के भाव जान सकते हैं।
क्या टेलीपैथी का अस्तित्व होता है ?
जब बच्चा तकलीफ में होता है तो माँ को सबसे पहले पता चल जाता है। यह टेलीपैथी के जरिये ही होता है। माँ भले ही बच्चे से दूर रहे लेकिन उसके दुख का पता उसे चल जाता है। महाभारत काल में संजय के पास यह क्षमता थी। उन्होंने दूर चल रहे युद्ध का वर्णन धृतराष्ट्र को सुनाया था।यह हमारे साथ अक्सर होता है लेकिन हमें इसका एहसास नहीं होता। कभी-कभी आप ऐसे व्यक्ति के बारे में सोचते हैं जिसके आप काफी करीब है और वह व्यक्ति उसी पल आपको कॉल कर देता है या आपके दरवाजे पर खड़ा होता है।टैलीपैथी का उद्देश्य किसी के मन को पढ़ना नहीं है। यह केवल संदेश देने और प्राप्त करने के लिए एक इंस्टैंट मैसेंजर की तरह इस्तेमाल किया जा सकता है। दो लोगों के बीच टैलीपैथिक कनेक्शन काम करने के लिए उनका एक दूसरे को अच्छी तरह से जानना जरूरी है। पति-पत्नी, भाई बहन, करीबी दोस्त या रिश्तेदार हमारे सबसे अच्छे टेलीपैथिक दोस्त बन सकते हैं।
पांच ज्ञानेद्रियों के अलावा जब हमारी छठी इन्द्रिय जागृत हो जाती है तो हमें कई वर्तमान एवं भविष्य की घटनाओं का ज्ञान होने लगता है। इस इन्द्रिय को विज्ञान ने अतीन्द्रिय ज्ञान( एक्स्ट्रा सेंसरी पर्सेप्सन ) का नाम दिया है। अब इस शब्द की महत्ता को केवल अध्यात्म ही नहीं बल्कि विज्ञान ने भी मान लिया है। वैज्ञानिकों ने इस पूर्वाभास की शक्ति को चार वर्गों में बाँटा है।
परोक्ष दर्शन - इसमें वस्तुओं और घटनाओं की जानकारी बिना ज्ञान प्राप्ति के ही हो जाती है।
भविष्य ज्ञान- इसमें भविष्य में घटित होने वाली घटनाओं का पूर्व ज्ञान हो जाता है।
भूतकालिक ज्ञान- इसमें भी बिना किसी साधन के अतीत की घटनाओं की जानकारी हो जाती है।
टेलीपैथी- इसमेें बिना किसी यंत्र के अपने विचारों को दूसरे के पास पहुँचाना और दूसरों के विचार को ग्रहण करना होता है।
टेलीपैथी का वैज्ञानिक विश्लेषण
टेलीपैथी शब्द का सबसे पहले इस्तेमाल दिसंबर 1882 में फैड्रिक डब्लू.एच.मायर्स ने एक जरनल 'सोसाइटी ऑफ़ साइकिक रिसर्च "में किया था। उन्होंने जरनल में लिखा था की दूर से प्राप्त संवेदन एवं प्रभावों को वे "टेलेस्थेशिया "एवं टेलीपैथी शब्द दे रहें हैं।
विल्हेम वान ने टेलीपैथी को विस्तारित करते हुए लिखा है "हर व्यक्ति में यह शक्ति होती है जिसे वह जाग्रत करके भविष्य को वर्तमान के दर्पण में देख सकता है। "
केम्ब्रिज विश्व विद्यालय के वैज्ञानिक एंड्रियन डास ने टेलीपैथी के बारे मन कहा हे कि "भविष्य में घटने वाली हलचलें वर्तमान में मानव मस्तिष्क में तरंगें पैदा करती हैं जिन्हे साइट्रानिक वेब फ्रंट कहते हैं। इन तरंगों के अहसास को मानव मस्तिष्क के न्यूरॉन ग्रहण कर लेते हैं। हमारे मस्तिष्क की की अल्फा तरंगों की आवृति इन साइट्रानिक तरंगों की आवृति जैसी होने के कारण हमारा तरंगों को पकड़ लेता है और इस प्रकार व्यक्ति खुद के एवं दूसरे व्यक्ति के भविष्य की घटनाओं के बारे में पता लगा लेता है "
डरहम विश्व विद्यालय के वैज्ञानिक गेरहार्ड वॉशर मेन का कथन है "मनुष्य को भविष्य का आभास इसलिए होता है क्योंकि विभिन्न घटना क्रम समय सीमा से परे एवं चिंतन क्षेत्र में विद्यमान रहते हैं। ब्रह्माण्ड का हर घटक इन घटना क्रमों से जुड़ा होता है। "
प्रसिद्ध दार्शनिक डी स्कॉट रोगो अपनी पुस्तक "एक्सप्लोरिंग साइकिक फिनमिना वियांड मैटर "में लिखते हैं "हमारे अन्तः करण में निहित भावनाओं का स्राव बहुत तेजी से मनोवेग के रूप में होता है। यही मनोवेग तरंगों के रूप में दूसरों के मस्तिष्क तक पहुँचते हैं।
आइंस्टीन ने अपने सापेक्षवाद के सिद्धांत में लिखा है कि यदि प्रकाश की गति से भी तीव्र गति वाला कोई तत्व हो तो वहाँ समय रुक जाएगा।
वैसे अभी तक प्रामाणिक रूप से ऐसी कोई उपलब्धि वैज्ञानिकों को हासिल नहीं हो सकी है, जिसके आधार पर टेलीपैथी के रहस्यों से पूरा पर्दा उठ सके।
दरअसल हमारा मस्तिष्क कम्प्यूटर की ही तरह काम करता है। इसमें हिपोकैम्पस, यादों को जमा करने के लिए हार्ड डिस्क का काम करता है। एमिग्डाला, इसमें से अच्छी और बुरी यादों को छाँटता है।डर से जुड़ी भावनाएं भी यहीं पैदा होती हैं एवं इसे समझने और डीकोड करने का काम भी यही करता है। एमिग्डाला और हिपोकैम्पस के आपसी संपर्क से ही अच्छे और बुरे कामों का एहसास होता है।
आप भी कर सकतें हैं दूर संवाद
टेलीपैथी की प्रक्रिया मस्तिष्क आधरित संवेगों पर नियंत्रण की प्रक्रिया है। इन संवेगों पर नियंत्रण का अभ्यास टेलीपैथी में व्यक्ति को निपुण बना सकता है। निम्न प्रक्रिया अपना कर सहज तरीके से व्यक्ति टेलीपैथी का अभ्यास कर सकता है।
➧अपने किसी नजदीक के दोस्त या परिवार के रिस्तेदार जो भावनात्मक रूप से आप से जुड़े हो उनको रिसीवर (receiver ) के रूप में साथी बनाइये। चूँकि ये दो मस्तिष्कों के बीच बिना बातचीत के संपर्क संवाद है अतः आप स्वयं सेन्डर (sender ) बनिये।
➧इस अभ्यास में आत्मीय विश्वास जरूरी है। आप दोनों को टेलीपैथी प्रक्रिया पर विश्वास होना जरूरी है। सन्देश भेजने वाले एवं सन्देश प्राप्त करने वाले दोनों को टेलीपैथी प्रक्रिया के प्रति उत्सुकता होनी चाहिए।
➧शारीरिक रूप से शांति एवं आराम दोनों व्यक्तियों के लिए जरूरी है। जब शरीर स्वस्थ होता है तब मस्तिष्क एवं मन सही गति में कार्य करते हैं। अतः जब आप शारीरिक रूप से स्वस्थ हो तब ही टेलीपैथी का अभ्यास करें।
➧मन विचारों का केंद्र होता है इसमें हज़ारों विचार आते हैं मन में विचारों को आने दें एवं साक्षी भाव से तटस्थ रहें।
➧अपने मन एवं शरीर में कोई अवरोध उत्पन्न न होने दें। मन एवं वातावरण शांत एवं स्थिर रखें।
➧विचार सम्प्रेषण के पहले दोनों व्यक्ति एक दूसरे के स्वरूप को अपने सामने साकार करने की परिकल्पना करें इसके लिए रंगीन चित्र की सहायता लेकर रूप का बिम्ब अपने मस्तिष्क में स्थापित करें एवं ऐसा महसूस करें की आप दोनों आमने सामने बैठें हैं।
➧ आप कल्पना करें की आप का मस्तिष्क उसके मस्तिष्क से एक सिल्वर कलर के ट्यूब से जुड़ा है तथा वह ट्यूब ऊर्जा से भरा हुआ है। यह एक चैनल है जिसके द्वारा आपके विचार उस व्यक्ति के मस्तिष्क तक पहुंचेगें। यंह जरूरी नहीं हैं की आप ट्यूब की ही कल्पना करें आप चाहें तो यह भी कल्पना कर सकते हैं की आप दोनों टेलीफोन पर बात कर रहें हैं। यह कल्पना सिर्फ आप के विचारों को सही दिशा देने का माध्यम हैं।
➧ अब आप भावनात्मक रूप से जो विचार सामने वाले व्यक्ति को सम्प्रेषित करना चाह रहें हैं उसको एकदम स्पष्ट अपने मस्तिष्क में सोच लें।
➧अब आप कल्पना करें की आपके विचार इस ट्यूब के माध्यम से आपके दोस्त के मस्तिष्क में सम्प्रेषित हो रहें हैं। आपका सम्प्रेषण भावनात्मक रूप से सशक्त होना चाहिए क्योंकि भावनायें सम्प्रेषण का सशक्त माध्यम होतीं हैं।
➧ सम्प्रेषण के समय आपको पूर्ण विश्वास होना चाहिए की आप का सम्प्रेषण बहुत सशक्त है एवं यह विचार आपके दोस्त तक पहुँच गया है।
➧सम्प्रेषण के समय आपके शरीर एवं मस्तिष्क में कोई दबाब नहीं होना चाहिए उस समय आप शांत एवं विश्वास से भरे होने चाहिए।
➧ जब आप अ[ने विचार सम्प्रेषित कर रहें होंगे तब एक समय ऐसा आएगा उस समय आप को लगेगा की आपका सम्प्रेषण पूरा हुआ जैसे ही ऐसी भावना आप के मन में आ जाए आप तुरंत अपना सम्प्रेषण बंद कर दें क्योंकि आपका काम पूरा हो चूका है।
➧ अगर ऐसी भावना नहीं आ रही है तो 15 मिनिट के बाद आप इस प्रयोग को छोड़ दें क्योंकि आगे प्रयोग करने से आप सफल नहीं होंगे एवं किसी और दिन के लिए वह अभ्यास टाल दें।
➧ सन्देश प्राप्त करने वाले व्यक्ति को हमेशा अपना मस्तिष्क खाली एवं शांत रखना पड़ता है।
➧सन्देश प्राप्त करने वाले व्यक्ति को प्रयोग करते समय सन्देश भेजने वाले व्यक्ति के बारें में सोचना चाहिए एवं उस समय उसके मस्तिष्क में जो भी विचार आ रहें हों उन्हें कागज पर लिखते जाना चाहिए।
➧ परिणामों की समीक्षा के लिए सन्देश प्राप्त व्यक्ति ने प्रयोंग के दौरान कागज पर कौन कौन से विचार लिखे एवं सन्देश भेजने वाले ने कौन कौन से संदेशों का सम्प्रेषण किया इसका मिलान करने पर प्रयोग की सफलता का आकलन किया जा सकता है।
➧ इस प्रक्रिया का जितना अभ्यास आप करेंगे परिणाम उतने ही बेहतर होगें।
➧यह अभ्यास 15 मिनिट से ज्यादा न करें क्योंकि इसमें बहुत ऊर्जा खर्च होती है एवं मस्तिष्क थक जाता है।
➧ बेहतर परिणामों के लिए धैर्य रखें।
सारे संसार में एक बृहद एवं अलौकिक चेतना फैली हुई है जिसके कारण विश्व के सम्पूर्ण जड़ व चेतन पदार्थ एक दूसरे से प्रभावित होते हैं। वैज्ञानिक इसे ब्रह्माण्डीय ऊर्जा (cosmic energy ) कहते हैं। मनुष्य की ऊर्जा भी इस ब्रह्माण्डीय ऊर्जा से अलग नहीं हो सकती है। यह ब्रह्माण्डीय ऊर्जा मनुष्य के चेतन के माध्यम से ही प्रकट होती है। यह सारी चेतना हमारे अवचेतन मन में संगृहीत है। हमारा अवचेतन मन समस्त शक्तियों का संग्रह केंद्र है। किन्तु हमारा अवचेतन मन हमेशा सुप्त रहता है। इस कारण से यह समस्त ऊर्जा भी निष्क्रिय होकर अवचेतन मन में कैद रह जाती है। अगर हम अपने अवचेतन मन को सक्रिय कर ले तो यह समस्त ऊर्जा जाग्रत हो कर हमें महा मानव बना सकती है।

 

 

सुशील कुमार शर्मा

 

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