Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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सांस्कृतिक जागरण का स्वर्णिम काल

 

सांस्कृतिक जागरण का स्वर्णिम काल

                 
भारतवर्ष की प्राचीन सनातन संस्कृति और सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के पुनर्जागरण का कल 21वीं सदी में पुनः प्रारंभ हो गया। भारत संस्कृति और राष्ट्र के गौरवशाली प्रतीक के रूप में प्राचीन मंदिर और देवस्थान आज के जीवन उधर और सौंदर्य करण का कार्य प्रारंभ कर दिया है। इस सौंदर्यजी कारण का कार्य जिस स्तर पर शुरू हुआ है ऐसा पहले स्वतंत्र भारत में कोई उदाहरण यदि खोजा जाए तो हमें केवल श्री सोमनाथ मंदिर का ही एक उदाहरण प्राप्त होता है। श्री सोमनाथ मंदिर का उदाहरण हमारे समक्ष था इसके बाद अपनी तरह के शब्दों को गडकर शासको ने भारत की मूल गौरवशाली धरोहरों और आस्था के केदो के प्रति हमेशा उपेक्षा का भाव रखा। 
 संयोग था  अथवा  नाश्तोदमश की भविष्यवनी भारत औषध की स्थिति में न जाए विधता ने भारतवर्ष में कुछ नया करने कराने का सोचा था जिसका नतीजा यह रहा की सन 2014 के बाद इशोर ध्यान दिया गया। आज अयोध्या में श्री राम मंदिर आज अयोध्या कारी डोर काशी विश्वानाथ कॉरिडोर महाकाल लोक वीआरआईएनडीएवन कारी डोर  
जैसी योजनाओं ने मूर्त रूप लिया। इसी के साथ साथ केदार मंदिर में स्वर्ण पत्र मंडित दीवारों का मैं भवन दृश्य देखने को मिलता है आती है वो हम काह सकते हैं की भारतवर्ष की प्राचीन सनातन संस्कृतिक राष्ट्रवाद का स्वरनिम काल है। 
उज्जैन जो मध्य प्रदेश में स्थित है वहाँ महाकाल लोक के पहले चरण का कम पुरी तरह से पूर्ण हो गया। आईएस लोक को भारत के प्रधानमंत्री 11 अक्टूबर 2022 को लोकार्पण किया। महाकाल लोक का कम दो चरणों में पुरा करना है महाकाल लोक की लगत 856 करोड़ है महाकाल लोक में जितनी बिजली खर्च होगी उसकी 90% बिजली वहीं महाकाल लोक में ही बनेगी। 
महाकाल लोक की खासीयत-
महाकाल लोक के नाइट गार्डन में भगवान शिव की लीलाओं पर आधारित 190 मूर्तियां स्थापित हैं और अष्टाएमबीएच की कहीं तो 108 स्तंभ स्थापित किए गए हैं जिस पर भगवान शिव और उनके गणों की विचित्र मुद्रएं बनाई गई हैं प्योर परिसर में 18 फेअट की 8 प्रतिमाएं हैं जिसमें नटराज शिव गणेश कार्य के दत्ता त्रेय अवातर, पंच मुखी हनुमान, चंद्रशेखर महादेव की कहानी, शिव और सती, समुद्र मंथन का दृश्य, आदि आदि इसमें शामिल है। 
माहालोक परिषद में 23 प्रतिमाओं की ऊंचाई 15 फेअट है जिसमें शिव नृत्य 11 रूद्र महेश्वर अवतार ,अघोर अवातर,
काल भैरव ,वीरभद्र द्वारा दक्ष वाद, गणेश और करतीकी इसके साथ माता पर्वती, मणिभद्र, आदित्य आर्टहट सूर्य और कपाल मोचक शिव शामिल है। 
उज्जैन के महाकाल परिसर में-
उज्जैन के महाकाल परिसर में 11 प्रतिमाएं 11 फीट की हैं। प्रवेश द्वार पर गणेश की प्रतिमा है इसके अतिरिक्त अर्धनारिश्वर अष्ट भैरव, ऋषि  भरद्वाज, ऋषि वाशिष्ठ, गौरतमा ऋषि कश्यप और जमदग्नि आदि शामिल है। 
महालोक में आठ प्रतिमाएं 10 फीट की है-
माहालोक की आठ प्रतिमाएं जिसमें लेटे हुऎ गणेश जी, हनुमान ,शिवम अवतार, लक्ष्मी सरास्वती पर्वती लव कुश पार्वती के साथ खेलते गणेश की प्रतिमा शामिल है। 
महाकाल लोक में 9 फेअट की 19 प्रतिमाएं-
महाकाल लोक में 9 फेअट की वो नई प्रतिमाएं आईएस प्रकार हैं जिसमें एक्ष अक्षिणी ,सिंह , बटुक भैरव ,सती पर्वती , 
भृंगी  ऋषि, विष्णु, नंदीकेश्वर, शिव भक्त, रावण, श्री राम परासुरम अर्जुन सती ऋषि शुक्रचार्य शनी देव ऋषि दधीचि की प्रतिमाएं शामिल हैं।
महालोक का 26 फीट  ऊंचा द्वार -
महाकाल लोक उज्जैन में 26 फुट ऊंचा नंदी द्वार मुख्य आकषर्ण का केंद्र बना हुआ है इसके अतिरिक्त शिव महाय संकुल की भी अलग महत्व है माहालोक संकुल को पूर्ण दया शिव मैं रूप में सजाया गया है आईएसमें कमल कुंडल सप्त ऋषि मंडल शिव स्तंभ मुक्ता काश, रंग मंच का निर्माण प्रमुख रूप से किया गया  है। 
महाकाल लोक निर्माण में पुराणों का भी विशेष ध्यान दिया गया है पुराण प्रासिद्ध रूद्र सागर के तट का विकास त्रिवेणी संग्रहालय का एकीकरण घर के हरियाली  भरा वातावरण तैयार किया गया है। इसी के साथ विशालकारी डोर में 111 फी ट लंबे संपूर्ण शिव विवाह के वृतान्त को प्रदर्शित करने के लिए न्यूरल पेंटिंग प्रदर्शित की गई है। 
शिव आवातर वाटिका-
महाकाल लोक के क्यूर वाटिका में भगवान शिव से जुडी़ कथाएं और विशाल प्रतिमाओं की स्थापना की गई है। 
त्रिपुरारी महाकाल लोक की स्थापना-
महाकाल लोक में त्रिपुरारी महाकाल लोक की स्थापना करके महाकाल संकुल में भव्य मूर्ति शिल्प स्थापित की गई है जिसमें ब्रह्मा जी राच के सारथी हैं। जिसमें संदेश दिया गया है की अधर्म पर सदैव धर्म की ही विजय होती है। इसी लोक में कैलाश पर्वत पर रावण की साधना को भी दिखाया गया है जिसमें असुर राज रावण ने कठोर तप करके महादेव को प्रसन्न किया था इस प्रसंग को प्रतिमा में दर्शाया गया है। इसी लोक में नृत्य करते हुऎ गजानन को भी दिखाया गया है। इसी लोक में मोहन साधना करते हुऎ सप्त ऋषि की प्रतिमाओं को भी स्थापित किया गया है। महाकाल मंदिर रूद्र सागर के तट पर स्थित है यह सरोवर उज्जैन के साथ सरोवरओं में से एक प्रमुख सरोवर के रूप में है अभी आईएसमें श्रद्धालु नव का बिहार का आनंद भी ले सकते हैं संघारक महादेव की प्रतिमा भी यहां स्थापित की गई है ब्रह्मा ने श्रृष्टि की रचना की है दर्शाया गया। 
महाकाल प्राणगण में 108 विशाल स्तंभ बनाए गए हैं । महादेव की परिसर में चित्र उकेरे गए हैं। जो चित्र उकेरे गए हैं वे प्रतिमाओं के अनुरूप हैं। 
उकेरे गए हैं जो भी उनमें शिव शक्ति कार्तीकेय और गणेश की लीलाओं का वर्णन है।
नौ ग्रह वाटिका-
नौ ग्रह वाटिका में मुक्ता काश रंगमंच , स्वागत संकुल की दुकानएं त्रिपुरा सुर बध, शिव पुराण पर आधारित भित्त
 चित्र से दीवार मनमोहक आभा विशेष रही है। 
मंदिर में जाने के लिए सुगम रास्ता-
महाकाल लोक के मंदिरों में मंदिर में जाने के लिए 900 मीटर लंबा महाकालेश्वर पथ बनाया गया है जहां से लोग पैदल जा सकते हैं पर के अंदर एक सुरक्षित संकुल का निर्माण किया गया है जिससे मंदिर में जाने वालों की निगरानी की जा सके। महाकाल का मंदिर प्राचीनतम मंदिरों में से एक है जिसकी प्राणगण को आधुनिक रूप दिया गया हाय धरती पर यहां देव लोक जैसा आभाष हो वैसे ही बनाने का प्रयास किया गया है। 
महाकाल मंदिर का पूर्व में क्षेत्रफल 2.82 हैकटेयर था जो आज परीयोजना पूर्ण होने पर बढ़कर 20.33 हो गया। आईएस माहालोक परिसर में वैदिक घड़ी भी लगाई गई है यहां कमल कुंड पंचमुखी शिव स्तंभ सप्त ऋषि त्रिवेणी मंडपम आदि तैयार किया गया है। 
काशी विश्वानाथ मंदिर-
काशी विश्वानाथ मंदिर 12 ज्योर्तिलिंगओं में एक है या मंदिर कई हजार वर्षों से वाराणसी में स्थित है काशी विश्वानाथ मंदिर का हिंदू धर्म में एक विशिष्ट है। काशी विश्वानाथ मंदिर में दर्शन करने के लिए शंकराचार्य संत एकनाथ रामकृष्ण परमहंस स्वामी विवेकआनंद माहरशी दयानंद गोस्वामी तुलसीदास जी साहित अनेक महंत ने अपनी हाजिर लगाई है। 
इसी काशी में संत एकनाथ जी भगवत लिखकर पुरा किए जीसे काशी नरेश तथा विद्युत जानो द्वारा उस ग्रंथ को हाथी पर रखकर धूमधाम के साथ और बाजागाजा के साथ शोभायात्रा निकाली गई। कहा जता है की भगवान भोलेनाथ आर्टहट विश्वानाथ जी का एक बर दर्शन और गंगा में एक बर स्नान कार्ड लेने मात्र से यहां मोक्ष की प्राप्ति मिल जाति है। 
काशी विश्वानाथ कॉरिडोर का शिलान्यास 8 अप्रैल 2019 को  लोकार्पण किया गया जिसका 13 दिसंबर 2021 ➡
को इसको भारत के प्रधानमंत्री द्वारा लोकार्पण किया गया। 
ज्ञानवापी में प्राचीन विश्वानाथ मंदिर मैं भी दर्शन पूजन का आदेश सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिये जाने के बाद मिल रहा है पूजा पाठ वाहन चल रहा है। विश्वानाथ मंदिर मैं भगवान भोलेनाथ का सुगंध दर्शन और रूक जा अभिषेक करने का विधान किया गया है जिससे किसी भी भक्त को किसी प्रकार के ना हो। 
- सुख मंगल सिंह

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