Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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पहनावे अपने-अपने

 

पहनावा देख कर किसी को,
कहना नहीं कभी बदनसीब।
नारी कपड़ा साधारण भली,
देख छोटी ग्रामीण गंवार नहीं,
लड़का - लड़की सामने पड़ा,
आई.पी. एस.दमदार खड़ी।।

भर लो बाहों में अभी मालिक,
हमें झूम लेने दो!
खूबसूरत चितवन नशीली,
ठहर, चूम लेने दो!
आंखों से दीदार करना तुझे,
छूकर देख लेने दो!
    आपको देखने की उत्सुकता,
    हृदय में ज्ञान मेरे दो!
कविता की भाषा मनुजता की,
     उसे पहचान करने दो!
     छोटे गांव का रहने वाला हूं,
      वास्तविकता जान लेने दो!
    भारतीय संस्कृति- परंपराओं को,
     परवान चढ़ने दो!
     कविता भूखे को भोजन नहीं देती,
      आत्मज्ञान लेने दो!
     उद्देश्य संवेदनाओं का विकास,
     प्रकृति से मेल करने दो!
     करना मानव चेतना का विस्तार,
      कवि को ज्ञान ऐसा दो!
      संकट में लिखी गई कविता को,
       संकट दूर करने दो!
       भाषा है जीवन की पीड़ा - आनंद,
      पहचान करने दो!
      
मासूम हो पर कमजोर नहीं,
इंसान हो चोर नहीं।
चश्मा लगाया है आंखों में,
 पर आदमखोर नहीं।।

दुनिया चाहती है कि क्या हम,
वही भ्रष्टाचार करें।
अनर्गल प्रलाप समाज में करती,
वैसा हम व्यवहार करें!
झगड़ू मंच से भाषण करता रहा,
उसकी सोच प्रहार करे।।


- सुख मंगल सिंह


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