Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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"मानव अभिलाषा"

 

"मानव अभिलाषा"

सत्य का पालन करूं मैं,

वागेंद्रिय स्थित मन में हों!
मन - वाणी रहे सदा स्थिर,
ब्रह्म रक्षा करें सदा मेरा।

त्रिविध ताप का नाश हो,
मन - वचन में शांति हो !
रात-दिन अध्ययन करूं मैं,
श्री गणेश का भजन करूं।

सहयोग करूं दूसरों का भी,
 पर पक्षपात से रहित रहूं।
दृष्टिकोण को उत्तम रखूं ,
समर्थ और स्वावलंबी बनूं।

 संस्था परिवार टूटे नहीं,
भटके नहीं असहाय कोई।
अपनाएं नहीं झगड़ झंझट,
तालमेल बिठाकर चलें सही।

सुयोग्य सौभाग्य संतोष रहे,
गुणों का हमेशा स्मरण  करें।
अहंकार स्वाभिमान से दूर रहें,
गुणवानों की  प्रशंसा करें।

शिष्टाचार - मित्रता अपनाएं,
 श्रमशील सुव्यवस्था बनाएं।
उद्दंड - उच्छृंखलता से दूर रहें,
उदारता का बीजारोपण करें।

अपव्यय की आदत नहीं डालें,
नशा - दुर्व्यसन को भी न पालें।
योग्यता बुद्धि से वंचित ना रहे, 
आलस्य रहित आदत डालें।

त से ब्रह्म जानने की इच्छा,
मानव की होती भारी परीक्षा।

विद्या से अमरत्व प्राप्त कर,
विद्या से मृत्यु पार कर।
गुरु उपासना आदि कर्म कर,
सतायु जीने की इच्छा कर।

क्षुधा - बिपाशा भी  है भागीदार,
अन्न पर तेरे उसका भी अधिकार।
भूख - प्यास को ईश्वर का वरदान,
देवताओं के हविष्य में भागीदार ।।

- सुख मंगल सिंह




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