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" शिलादित्य द्वितीय और बीस देशों के राजा"

 

" शिलादित्य द्वितीय और बीस देशों के राजा"

राजा शिलादित्य दिखता इंद्र समान
हाथी ऊपर बुद्ध की प्रतिमा विद्यमान।
कामरुप का राजा दाहिने विराजमान
500 हाथियों ने रक्षा की ली कमान।।

गंगा तट दक्षिण में था वह विद्यमान
बुद्ध की मूर्ति को कराता रहता स्नान।
बहुमूल्य वस्तुएँ लुटाता राजा महान
मूर्ति कंधे पर रख ले जाता गुणवान।।

रत्न जड़ित रेशमी वस्त्र उसे पहनता
तब सब के साथ भोजन करने जाता।
विद्वानों को एकत्रित शास्त्रार्थ कराता
संध्या के समय अपने भवन में जाता।।

राजा 610 से 650 तक राज्य किया
पैदल हाथी घोड़ा फ़ौज तैयार किया।
अपनी सेना के पौरुष बल पर उसने
पंजाब को छह वर्षों में अधीन किया।।

बौद्धधर्म का वह राजा मानने वाला
जीव बध का उसने निषेध किया था।
भारत की सड़कों पर चिकित्सालय
बनवाया और वहां वैद्य को रखवाया।।

जल औषधि का जनता में प्रबंध किया
मुफ़्त दवा वितरण वहां से करवाया।
पांच वर्ष पर बौद्ध धार्मिक त्योहार -
का आयोजन विधिवत करवाता था।।

भारी समूह एकत्र करने का काम किया
राजा सारी जनता को बहुत दान दिया।
संघाराम नालंदा हेंसांग को बुलवाया
शिलादित्य,उसके देश का हाल जाना।।

यात्री से उसके देश,विषय में प्रश्न पूछा,
वृत्तांत सहित सुन, राजा प्रसन्न हुआ।
शिला ! कान्यकुब्ज लौटने वाला था
की, वह धार्मिक समूह एकत्र किया।।

गंगा के दक्षिण किनारे से यात्रा स्वयं
लाखों लोगों के साथ प्रारंभ किया।
उत्तरी किनारे से कामरुप के राजा को
भी वह यात्रा करने का आदेश दिया।।

दोनों किनारे से यात्रा शुरू कर आई
90 दिनमें कान्यकुब्ज सेना पहुँच गई।
बीस देश के राजा को वह कार्य दिया,
राजा सभी मिलके यात्रा सफल किया।

प्रसिद्ध प्रबंध करता और सैनिक साथ,
विद्वानों का मिलकर एकत्र हुआ हाथ।
श्रावण और ब्राम्हण ने भी दिया साथ,
शिला,के साथ सबका मिला था हाथ।।

उसने गंगा के पश्चिम में एक संघाराम,
पूरब 100 फीट ऊंचा बुर्ज बनवाया।
बीच में उसने मनुष्य के कद की एक
बुद्ध की मूर्ति स्वर्णिम स्थापित की।।

बल्लभी राज्य में जब वह यात्री पहुंचा,
लोगों को धन दौलत से संपन्न पाया।
प्रबल धनाढ्य सुसंपन्न देखकर उसने,
इतिहास में अपने, उच्च स्थान दिया।।

बल्लभी के अधीन सौराष्ट्र पूरा देखा
राजधानी में दूर-दूर तक बहुमूल्य धन।
सुंदर पदार्थ उनसे भरा हुआ इलाका,
उसने एकत्र करते लोगों को देखा।।

अपनी कलम से उसने बल्लभी का
इतिहास भूगोल संक्षिप्त रुप दिखाया।
बौद्ध और हिंदू मित्रता का वह संदेश
प्राचीन एकता को 'मंगल' ने सुनाया।।

- सुख मंगल सिंह
sukhmangal@gmail.com






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