रिश्तों और संबंधों की बदलती परिभाषा
कलयुग की इस बदलती दुनिया में, रिश्तों और संबंधों की परिभाषाएं भी बदलती जा रही हैं। पहले के समय में, रिश्तों को बहुत ही पवित्र और सम्मानजनक माना जाता था, लेकिन आजकल के समय में ये रिश्ते बदलते जा रहे हैं।
मां को भाभी, भाभी को दीदी और पत्नी को दोस्त कहना, ये सब बदलते समय के साथ बदलते रिश्तों की निशानी है। पहले के समय में, मां को माता या माँ कहा जाता था, भाभी को भाभी ही कहा जाता था और पत्नी को पत्नी या घरवाली कहा जाता था। लेकिन आजकल के समय में, ये सब बदल गया है।
इस बदलाव के पीछे कई कारण हो सकते हैं। एक कारण यह हो सकता है कि लोग अब अधिक आधुनिक और स्वतंत्र होते जा रहे हैं। वे अपने रिश्तों को अधिक सहज और अनौपचारिक बनाने की कोशिश कर रहे हैं। लेकिन इसके साथ ही, यह भी देखा जा रहा है कि लोग अपने रिश्तों की पवित्रता और सम्मान को भूलते जा रहे हैं।
पत्नी को दोस्त कहना, यह एक ऐसा रिश्ता है जो पहले के समय में नहीं था। पहले के समय में, पति-पत्नी के रिश्ते को बहुत ही पवित्र और सम्मानजनक माना जाता था। लेकिन आजकल के समय में, लोग अपने पति-पत्नी के रिश्ते को अधिक सहज और अनौपचारिक बनाने की कोशिश कर रहे हैं।
लेकिन यह बदलाव कितना सही है, यह एक बड़ा सवाल है। क्या हम अपने रिश्तों की पवित्रता और सम्मान को भूलते जा रहे हैं? क्या हम अपने रिश्तों को अधिक सहज और अनौपचारिक बनाने की कोशिश में अपने रिश्तों की गहराई और महत्व को खोते जा रहे हैं?
इन सवालों का जवाब ढूंढना बहुत जरूरी है। हमें अपने रिश्तों की पवित्रता और सम्मान को बनाए रखने की कोशिश करनी चाहिए। हमें अपने रिश्तों को अधिक सहज और अनौपचारिक बनाने की कोशिश करनी चाहिए, लेकिन इसके साथ ही हमें अपने रिश्तों की गहराई और महत्व को भी बनाए रखना चाहिए।
निष्कर्ष:
कलयुग की इस बदलती दुनिया में, रिश्तों और संबंधों की परिभाषाएं भी बदलती जा रही हैं। हमें अपने रिश्तों की पवित्रता और सम्मान को बनाए रखने की कोशिश करनी चाहिए। हमें अपने रिश्तों को अधिक सहज और अनौपचारिक बनाने की कोशिश करनी चाहिए, लेकिन इसके साथ ही हमें अपने रिश्तों की गहराई और महत्व को भी बनाए रखना चाहिए।
कलयुग में लोगों के रिश्तों और संबंधों में बदलाव आना एक आम बात है। पहले के समय में, लोग अपने रिश्तों को बहुत ही पवित्र और सम्मानजनक मानते थे, लेकिन आजकल के समय में ये रिश्ते बदलते जा रहे हैं।
दादा को चाचा, चाचा को भाई साहब, भाई को अबे रे कहना, यह एक ऐसा बदलाव है जो आजकल के समय में देखा जा रहा है। पहले के समय में, दादा को दादा या दादाजी कहा जाता था, चाचा को चाचा या चाचाजी कहा जाता था और भाई को भाई या भैया कहा जाता था। लेकिन आजकल के समय में, लोग इन रिश्तों को अधिक अनौपचारिक और सहज बनाने की कोशिश कर रहे हैं।
साले को भाई और बहनोई को का हो कहना, यह भी एक ऐसा बदलाव है जो आजकल के समय में देखा जा रहा है। पहले के समय में, साले को साला या सालाजी कहा जाता था और बहनोई को बहनोई या जीजाजी कहा जाता था। लेकिन आजकल के समय में, लोग इन रिश्तों को अधिक अनौपचारिक और सहज बनाने की कोशिश कर रहे हैं।
इस बदलाव के पीछे कई कारण हो सकते हैं। एक कारण यह हो सकता है कि लोग अब अधिक आधुनिक और स्वतंत्र होते जा रहे हैं। वे अपने रिश्तों को अधिक सहज और अनौपचारिक बनाने की कोशिश कर रहे हैं। लेकिन इसके साथ ही, यह भी देखा जा रहा है कि लोग अपने रिश्तों की पवित्रता और सम्मान को भूलते जा रहे हैं।
यह बदलाव कितना सही है, यह एक बड़ा सवाल है। क्या हम अपने रिश्तों की पवित्रता और सम्मान को भूलते जा रहे हैं? क्या हम अपने रिश्तों को अधिक सहज और अनौपचारिक बनाने की कोशिश में अपने रिश्तों की गहराई और महत्व को खोते जा रहे हैं?
इन सवालों का जवाब ढूंढना बहुत जरूरी है। हमें अपने रिश्तों की पवित्रता और सम्मान को बनाए रखने की कोशिश करनी चाहिए। हमें अपने रिश्तों को अधिक सहज और अनौपचारिक बनाने की कोशिश करनी चाहिए, लेकिन इसके साथ ही हमें अपने रिश्तों की गहराई और महत्व को भी बनाए रखना चाहिए।
निष्कर्ष:
कलयुग में लोगों के रिश्तों और संबंधों में बदलाव आना एक आम बात है। हमें अपने रिश्तों की पवित्रता और सम्मान को बनाए रखने की कोशिश करनी चाहिए। हमें अपने रिश्तों को अधिक सहज और अनौपचारिक बनाने की कोशिश करनी चाहिए, लेकिन इसके साथ ही हमें अपने रिश्तों की गहराई और महत्व को भी बनाए रखना चाहिए।।
- सुख मंगल सिंह
वरिष्ठ साहित्यकार कवि एवं लेखक
वाराणसी वासी
Sukhmangal Singh
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