Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

राष्ट्र भाषा के रास्ते पर हिंदी

 

" राष्ट्र भाषा के रास्ते पर हिंदी"

स्वतंत्रता के बाद से ही हिंदी पर सरकार सहित विभिन्न संस्थाओं ने काम करना शुरू किया परंतु हिंदी आज भी हमारे सपने की भाषा बन कर रह गई यह सभी एक साथ करोड़ों लेखक पाठक कभी मिलकर अगर कार्य करते तो आज माहौल कुछ और ही होता है। हिंदी के लिए अभियान चलाने की आवश्यकता है समाचार पत्रों सोशल मीडिया हिंदी फिल्म जगत और विश्व के अनेक विश्वविद्यालयों ने हिंदी भाषा पर बहुत कार्य किया है। हिंदी के बिना हम संस्कृत को नहीं जान सकते, हिंदी व्यापारिक दृष्टिकोण से समर्थ भाषा है। हिंदी एक ऐसी भाषा है जो दिल में आए तो दिमाग में भी बस जाती है।
भारतीयों के घरों में हिंदी का माहौल होना चाहिए। किसी भी होने वाले साक्षात्कार में हिंदी को बढ़ावा देना चाहिए। हिंदी को बढ़ावा देने के लिए नौकरशाह अधिकारियों को जागरूक करते रहना चाहिए। हिंदी एक ऐसी भाषा है जो अपने साथ सहसबंध स्थापित कर अपनी महत्व को दर्शाती है। हिंदी को तकनीक और विज्ञान के क्षेत्र में जोड़कर आधार बनाया जा सकता है। हिंदी मातृभाषा ही नहीं अपितु सभी भारतवासियों का मान सम्मान और पहचान है। निर्मल निर्मल कोमल पुलकित हरबानी की शान है। सारे जगत में प्रेम लुटाती भारत की स्वाभिमान है। तुझे बिछाव तुझे छोड़ 
 ओढूं तू मेरी परिधान है।
अपनी धरती अपनी मिट्टी और अपनी भाषा ही विदेशों में अपनी पहचान होती है। विश्व के हर कोने कोने में हिंदी अपनी पहचान बना रही है। विदेशों में प्रवासी भारतीय अपने बच्चों को हिंदी के प्रचार प्सार के लिए बहुत अच्छा कार्य कर रहे हैं। भारत में लगभग 50 करोड लोगों द्वारा बोली जाने वाली हिंदी भाषा का बाजार के हिसाब से बहुत अहम होती चली जा रही है। माइक्रोसॉफ्ट गूगल जेसीआई की कंपनियां हिंदी के विकास के लिए शिकंजी तक तकनीकी जरूरतों के अनुकूल काम कर रहे हैं और अधिक से अधिक पैसा कमा रहे हैं। मातृभाषा केवल संभाग के लिए ही नहीं बल्कि संस्कृत के प्रवाह प्रवाह और ज्ञान के विस्तार का माध्यम भी होती है। भारत का प्रतिनिधित्व करने की क्षमता अगर किसी भाषा में है वह मात्र हिंदी ही है। हिंदी जितनी समृद्ध होगी हमारी संस्कृति और परंपराओं की सम वाहिका भी होगी। देशवासियों को मात्र हिंदी का सम्मान ही नहीं करना चाहिए। बल्कि हिंदी में पढ़ना लिखना बोलना और उसका प्रचार प्रसार करना भी आवश्यक है। विदेशी भाषा की होड़ में अपनी समृद्ध भाषा हिंदी को सशक्त बनाने की आवश्यकता है भाषाओं का तिरस्कार नहीं करना चाहिए सभी भाषाओं का सम्मान करना चाहिए परंतु अपनी प्रमुख भाषा हिंदी के विकास के लिए घर और बाहर शिक्षा और त्यौहार कार्य और व्यवहार में प्रयोग में लाते रहना चाहिए।
हिंदी में स्वतंत्रता आंदोलन के बाद से कई आंदोलन झेले हैं। हिंदी के खिलाफ जब भी आंदोलन हुए उसके पीछे आम लोगों की सोच और चिंताओं के बजाय स्थानीय राजनीति विशेष रूप से हावी हुई। हिंदी के विरोध में कनिमोझी ने जो राज्यसभा की सांसद थी डूबा दो दो बार हिंदी के विरोध में भावनाएं उकसाने की कोशिश की। परंतु जन समर्थन के अभाव में वह सफल ना हो सकीं। 
तमिल नाडु राज्य सन 1937 से ही हिंदी के विरोध में लगा हुआ है। जबकि प्रीमियर राजगोपाल सी राजगोपालाचारी मैं हिंदी का समर्थन किया राजगोपालाचारी जी ने हिंदी को मद्रास प्रांत में पढ़ाना अनिवार्य कर दिया। संविधान लागू होने के बाद 26 जनवरी 1965 को हिंदी राजभाषा के तौर पर अहम भूमिका में आई। एक साथ हिंदी सभी प्रदेशों में पढ़ाई जानी थी परंतु इसका विरोध सन 1955 से ही शुरू हो गया था।
पंजाब में उर्दू फारसी और अंग्रेजी भाषा के प्रचलन के कारण हिंदी और संस्कृत भाषा की उपेक्षा की जा रही है। जबकि विश्व के 40 से अधिक देशों में 600 से अधिक संस्थान विश्वविद्यालयों कॉलेजों में हिंदी पढ़ाई जाती है। जापान में टोकियो के विश्वविद्यालयों में सैकड़ों वर्षो से हिंदी पढ़ाई जाती है। विश्व के अनेकों देश हिंदी पर कार्य कर रहे हैं उनमें से मारीशस, त्रिनिदाद ,टोबैगो,  दक्षिण अफ्रीका,सूरीनाम,गुयाना,फिजी चीन आदि देशों में प्रवासी हिंदी के प्रचार के लिए कार्य कर रहे हैं। संयुक्त राष्ट्र संयुक्त राष्ट्र हिंदी में समाचार  और रेडियो बुलेटिन प्रसारित करने लगा है संयुक्त राष्ट्र के ऊपर फेसबुक इंस्टाग्राम पर सोशल कमेंट हिंदी में भी पोस्ट करता है। भारत सरकार पिछले कुछ वर्षों से हिंदी को संयुक्त राष्ट्र की आधिकारिक भाषा का दर्जा देने की कोशिश में लगा हुआ है। हिंदी के प्रभाव को देखते हुए अधिक से अधिक लोगों को हिंदी में शिक्षित विकसित करने के लिए प्रयास किया जा रहा है।
भारत की एकता और अखंडता के लिए एक राष्ट्रभाषा का होना बहुत जरूरी है। ज्यादा भाषाओं को मान्यता देना देश के लिए अच्छा सिद्ध नहीं हो सकता। सभी भाषाओं का अध्ययन अध्यापन आवश्यक है। 6000 भाषाओं में से 300 भाषाओं की लिपि है जबकि अंग्रेजी भाषा की अपनी कोई डीपी नहीं है उसने रोमन लिपि ली है फिर भी हम अंग्रेजी की तरफ ही आकृष्ट अपने बच्चों को करते आ रहे हैं। हिंदी विविध भाषाओं को अपने में समेटे हुए मधुर सरल और सुबोध गंभीर भाषा है। सभी भाषा का अपना व्याकरण होना चाहिए। हिंदी भाषा का अपना व्याकरण है। जि स पंजाब प्रांत में उर्दू फारसी अंग्रेजी भाषा के प्रचलन के कारण संस्कृत और हिंदी की उपेक्षा हो रही थी वहीं पंजाब के नगर में सनातन धर्म हिंदी पाठ शालाओं का जाल बिछ गया है। लोग हिंदी के महत्व को समझने लगे हैं। हिंदी देश की एकता का प्रतीक है। हिंदी राष्ट्र का सम्मान है हिंदी जन जन का मान है ।हिंदी से सब का कल्याण है।
- सुख मंगल सिंह,अवध निवासी

Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ