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निबंध के गुण - धर्म

 
" निबंध के गुण - धर्म "

निबंध  का लेखक जीवन की  समग्रता का अनुभव -
और साहित्य जगत से आनंद ग्रहण करना चाहता है।
निबंध कार जीवन का तिरस्कार कभी नहीं करता है,
स्वप्न लोक में अपने को निरर्थक नहीं 
 घुमाना चाहता है।।

निबंधकार की मनो दशा चाहे जो भी हो,
जीवन को देखने की दृष्टि चाहे सैकड़ों प्रकार की हो!
वह हमारा सह प्रवासी है,सफर में साथी है कहता है,
रचनाकार साहित्य के साथ मिलकर समाज हित करता है।।

निबंध मूलतः एक सृष्टि रचना होती है,
सृष्टि की किसी भी तरह अपनी विशेषता होती है।
निर्माण होती है,कहती है,केवल हमारे सामने,रूप खड़ा करती है ।।

सृष्टि की जितनी भी वस्तुएं हमारे समक्ष होती हैं,
उनकी अपनी भाषा होती है,वह हमसे कुछ कहती और बताती हैं।
रूप सौंदर्य का उद्देश्य न सीख देना है और न इच्छा की पूर्ति करना है,
किसी सिद्धांत पर न अनुमोदन करना,उसका अपना एक अभिप्राय है।। 

अपने रूप किसको प्रतीति करा देना, और प्रतीति से आत्मा का संबंध स्थापित होता है।
निबंध एक सहज और छोटी पकड़ांडी
है,
जो लेखक और पाठक को जोड़ती है।।

निबंधकार मित्र के समान मन से मन की कहता है,
अध्यापक अथवा प्रवचन करता की भांति उपदेश नहीं देता है।
निबंध लेखन में रुचि की दृष्टि से शक्ति हीनता कहीं नहीं होती,
निबंध कर्ता की बात निश्चल हृदय से सीधे बाहर निकल जाती है।।

निबंध में सामर्थ के सभी तत्व पाए जाते हैं,
जो पाठक के अंदर हृदय में सीधे प्रवेश कर जाते हैं।
साहित्य का गद्य विकास उसका निबंध लेखन होता है,
जो पाठक को अपने साथ बहा ले जाने की क्षमता रखता है।।

निबंध को भारतीय हल्के साहित्य के रूप में नहीं स्वीकार कर सकते,
भारतीय विद्वानों की दृष्टि में निबंध,
गंभीर विचारों की कड़ी जोड़ने की मुहिम रही है।।

निबंध रस साहित्य की श्रेणी में आता है,
मानसिक उल्लास और उत्तेजना उत्पन्न करने की योग्यता रखता है।
इसकी योग्यता रचनात्मक भूमिका के साहित्य की श्रेणी में होती है,
निबंध कुछ अंशों में गीति कविता के समकक्ष पड़ता है,
लक्ष इसका भाव के रस दिशा में पहुंचता है।।

- सुख मंगल सिंह




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