Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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" मशीन से सोना "

 

एक मित्र ने बड़े प्रेम से हमें बुलाया,

पास बुला के बाजू में हमें बिठाया।
धीरे-धीरे फुसुर फुसुर के समझाया,
नई मशीन अच्छी फंडिंग मैं ले आया।

फडा बड़े ध्यान से उसने समझाया,
ऊपर नीचे की बातों में दिल भर आया।
अंधेरी में वह करती काम उसे बताया,
कोयला इसमें झुकें बाहर सोना आता।

मैं बोला तू बड़े काम की वस्तु लाया,
कवि एक उसी वक़त कविता लाया। 
कविता से बोला रात मशीन चलाया,
भर रात कविता ने मुझको उलझाया।

पास मित्र के कवि ने यह बात बताया,
वे इधर से आलू उधर से सोना ढाया।
तूने कभी कोयले से सोना बता उगाया,
खाली मशीन हमने जमकर चलाया।

नहीं कोयला, धूल में जेवर गढ़ आया,
आलू कोयला सोना भ्रमजाल बिछाया।
फिर मित्र के साथ उसके घर पर आया,
कोयला डालकर उसने सोना उगाया?

- सुख मंगल सिंह



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