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मार्कण्डेय आश्रम - तपस्या

 

मार्कण्डेय आश्रम - तपस्या

साध शिरोमणि सूत जी से , शौनक मुनि के कहा,
सचमुच आप , वक्ताओं सिरमौर!
 हैं सिरमौर हृदय से गहा। 
संसार में जो लोग अंधकार में भूले भटके राही होते,
आप परमात्मा से साक्षात्कार कराने में सफल रहे।।

लोग कहते हैं कि मृकुंड ऋषि के पुत्र चिरायु मार्कण्डेय ,
जिस समय प्रलय जगत को निगल लिया था।
उस समय भी वह मार्कंडेय जी बजे हुए थे !
सारी बेच भी प्ले कालीन समुद्र में डूब गई जब,
उस समय मार्कंडेय उसमें डूब उतरा रहे थे।।

उसी समय मारकंडेय जी अक्षय बट की पत्ती के दोन में,
अत्यंत अद्भुत सोए हुए बाल मुकुंद का दर्शन किया।
शौनक जी ने सूत जी से अपनी मन का संदेश सुनाया,
और किस रहस्य को जानने की उत्कंठा जाहिर किया।।

शौनक जी से सूत जी से उनके प्रश्नों पर उत्तर में कहा,
आपके  इस सुंदर प्रश्नों से लोगों का भ्रमित जाएगा।
सबसे बड़ी बात यह है कि विश्व का धाम में कथा में,
भगवान नारायण की महिमा का गुणगान किया है।।

मृकुंड - ऋषी ने मारकण्डेय जी के सभी संस्कार समय से किए,
जो भी कथा का गान करता कलिमल उसके नष्ट हो जाते हैं।
वे विधि पूर्वक  वेदों का अध्ययन कर तपस्या स्वाध्याय से संपन्न है,
और  मार्कंडेय जी आजीवन ब्रम्हचर्य का व्रत ले रखा है।।

अपने शिर पर जताएं बढा रखी थी और शांति भाव रहते थे,
शरीर में यज्ञोपवीत हाथ में कुंडल और दंड धारण करते थे।
काले मृग चर्म, रुद्राक्ष माल और कुश की चटाई पूंजी थी,
जिसे ब्रह्मचारी अपने व्रत की पूर्ति के लिए किया था।।

प्रातः सायं काल भिक्षा लाकर गुरुदेव की चरणों में निवेदन करते,
गुरुदेव की आज्ञा होती तो एक बार खा लेते अथवा उपवास पर रहते।
घोर तपस्या और स्वाध्याय के बल पर मारकंडेय जी,
मृ त्यु पर उन्होंने बड़ी  विजय प्राप्त कर ली थी।।

मारकंडे जी के मृत्यु पर विजय प्राप्त करने से लोग विस्मित हो गये।
मारकंडे जी भीख की छाल का ही वस्त्र पहनते थे।
अविद्याआदि सारे क्लेशों को मिटाकर मार्कण्डेय जी,
अंतह करण इंद्रियातित परमात्मा का स्मरण करने लगे।।

महा योग के द्वारा जोगी मार्कंडेय जी, अपना चित् भगवान स्वरुप से जोड़ते।
जय इस प्रकार बात का पता को लगा,
उनकी तपस्या में विभिन्न डालने लगा।

उनके आश्रम पर अप्सराएं आदि इंद्र भेजने लगा,
मारकंडे जी का आश्रम हिमालय के उत्तर की ओर है।
जहां पुष्प भद्रा नाम की नदी बहती रहती है,
उसी की पास में चित्रा नाम की एक शीला है।।

मारकंडे जी का आश्रम बड़ा ही पवित्र और सुहावना है,
आश्रम के चारु तरफ हरी-भरी पवित्र वादियां मनभावन है।
 आश्रम के आसपास वृक्षों पर लगाएं लहराती रहती हैं,
वृक्षों के झुरमुट में पुण्य आत्मा ऋषि गण निवास करते हैं।।

भाई बड़ी पवित्र निर्मल जलासय जल से भरी रहती हैं,
जब की वह जलासय सभी ऋतुओं में  एक  - से ही रहते हैं।
मतवाले मोर पंख फैलाकर कला पूर्ण नृत्य करते हैं,
वहीं मतवाली कोकिल पंच स्वर में कुहू - कुहू कूकते रहते हैं।।
( साभार शुक सागर)
- सुख मंगल सिंह अवध निवासी





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