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Dr. Srimati Tara Singh
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"कविता में ईश्वर का वरदान"

 

"कविता में ईश्वर का  वरदान"


जिस कविता में से होता अनर्थ का नाश,
परमात्मा की अनुकंपा में काव्य का होता साथ!
वही कविता शुभ हो जाती है जिसमे प्रभु प्रभाव,
यथार्थ वही कभी कहलाता है जिसमें प्रभु का ध्यान।
उपदेश में काव्य का प्रयोग सोने में सुगंध का काम करता,
काव्य की सहायता के बिना उपदेश नीरस हो जाता है।
काव्य में अनुपम अलौकिक समय रास्ता होती है,
जो काव्य प्रेमी को आकृष्ट कर मत में चलने को विवश करता।
काव्य द्वार जिस आनंद की प्राप्ति होती है,
उसी आनंद को अलौकिक आनंद कहते हैं।
अलौकिक आनंद प्राप्त करने के लिए अनेक सुकम करते,
परंतु सुकाव्य के द्वारा आनंद प्राप्ति शीघ्र संभव है।
कठिन से कठिन कार्य भी काव्य से सुगम हो जाते हैं,
दु :ख का नाश काव्य आसानी से कर सकते हैं!
बाहों में दर्द होती थी नाश करने के लिए तुलसीदास जी ने,
हनुमान बाहुक नाम ग्रंथ की रचनाकार डाली है।
जिसने तुलसीदास जी के बाहों की पीड़ा दूर कर डाली,
काव्य तरंग का प्रभाव असंभव को संभव में बदल देते हैं।
मयूर और पदमाकर कवियों के कुष्ठ उन्मूलन में,
केशव दास की प्रेत योनि का नाश रचना ने होता है।
कविताबद्ध बंधन से मुक्ति दिलाने वाली पुस्तक सामने आई,
उसके रचइता नृसिंह पंचाशिका नाम की महिमा दिखाई।
काव्य में ऐसे फल की प्राप्ति होती है जिसकी,
अन्यत्र कहीं नहीं दिखाई पड़ता देती रहती है।
व्यवहार का पालन सहज रूटों से प्राप्त होता है।
आज भी सुकवियों के पुस्तकालय में उपलब्ध है।
किस तरह का बयान दिया जाना आवश्यक होता है ,
रामायण महाभारत और रघुवंश आदि साक्षी है।
तत्काल समाधान करने का काम का काव्य कर सकता है,
वही बैर भाव को दूर कर विजई काव्य तरंग होता है।

- सुख मंगल सिंह

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