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Dr. Srimati Tara Singh
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काशी है विद्वानों की खान : यही है पहचान

 

काशी है विद्वानों की खान : यही  है  पहचान


प्राचीनतम धार्मिक नगरी काशी, यूनान, मिश्र, और रोम की भाँति पुरातन तथा ऐतिहासिक नगरी है। वैज्ञानिक अन्वेषणों के अनुसार यह नगर विश्व के प्राचीनतम और निरंतर जीवंत रहे नगरों में से एक है। सर्व विद्या सम्पन्न रही आदि कालीन काशी तांत्रिक, गणपत्य, शैव, वैष्णव, शभ्य, प्रज्ञाओं की घामाचार कोलाचार दक्षिणा चारों की जैन तथा बौद्ध ज्ञान की यह भूमि अपना विशेष महत्व रचती है। ब्राह्मण ग्रंथों में शतपथ और गोपथ ब्राह्मण में काशी शब्द का उल्लेख है। उपनिषदों में 'काशी' पद आध्यात्म, विद्या अपरा, विद्या ब्रह्मविद्या के केन * रूप में वर्णित है। गार्गी ने ब्रह्म विद्या का ज्ञान काशी राज को दिया था। वेद अध्ययन, अध्यापन में काशी का मूर्धन्य स्थान रहा है। काशी के प्राचीन आध्यात्मिक विद्वानों में पं. महीधरोचार्य (16वीं शताब्दी) के थे। वत्सगोत्रीय अहिच्छवीय ब्राह्मण, विद्वान थे। पं. कवीन्द्राचार्य सरस्वती (17वीं शताब्दी के मध्य) के सर्वश्रेष्ठ वैदिक विद्वान थे। पं. भाष्करानंद का कर्म क्षेत्र कान्नी था, मैथेलाल ग्राम-कानपुर में जन्में अश्वनी शुक्ल पक्ष सप्तमी को 1837 में आपने 'प्रकाश' में दशों उपनिषदों के ऊपर अपनी सुबोध व्याख्या प्रस्तुत की। वैदिक साहित्य में आपका अप्रतिम योगदान रहा। पं. बालशास्त्री कर्मकांडियों में श्रेष्ठ प्रचश्तम् वेदपाठी थे। उस युग के विलक्षण विद्वानों में थे। पं. गंगाधर शास्त्री तेलइंग का जन्म 1853 ई. गंगा दशहरा को हुआ। पठन-पाठन का प्रारम्भ पं. बालकृष्ण भट्ट की पाठशाला में वैदिक शाखा, आपस्तम्भ के कृष्ण यजुर्वेद तथा उनके अंगों का विधिक अध्ययन किया। इन्होंने अग्निष्टोम तथा आप्तोर्याम नाम यज्ञों के आचार्यत्व का निर्वाह किया। इन्हें महारानी विक्टोरिया ने 1887 ई में महामहोपाध्याय की उपाधि से अलंकृत किया था। पं. नित्यानंद पर्वतीय का जन्म 1887 ई. में काशी में में हुआ था, इनके पिता रामदेव पंत थे। सज्ञोपवीत उपरांत पिता से वाज सनेही शाखा की संहिता का अध्ययन किये। वेद शास्त्र का अभ्यासी होने से धर्मशास्त्र और कर्मकांड घर सभ्यक अधिकार था। कृतियों में संस्कार दीपक 1917 में प्रकाशित परिशिष्ट दीपक 1912 में अन्त्यकर्म दीपक वर्षकृत्य दीपक कातीयेष्टि दीपक सापिण्डय दीपक इत्यादि। इनके शिष्यों में सर्वश्रेष्ट पं. सीता राम शेंडे, पं. माधव शास्त्री, पं. गोपाल शास्त्री क्रमशः वेदार्थ विचार यूकि खंगोल विज्ञान की दृष्टि से त्रटकवैदिक व्याख्या। ये माध्यंदिनशाखा के अध्येता थे। तथा ये कृष्ण चतुर्वेदीय आपस्तम्ब शाखा के कर्मकांडी थे। पं. मधुसूदन झा का जन्म सीता मणी के गाढ़ा नामक ग्राम में पं. वैद्यनाथ झा के पुत्र के रूप में हुआ। इन्होंने विज्ञानीति वृत्तवाद तथा सिद्धांतवाद नामक ग्रंथों का भी प्रणयन किया था। विद्या वाचस्पत्ति उपाधि से अलंकृत थे। जन्म 1866 में नासदीय सूक्त का गंभीर अनुसीलन कर दसवादों की सत्ता को स्वतंत्र सिद्धांत के रूप में ग्रहण किया तथा प्रत्येक पर स्वतंत्र ग्रंथों को प्रणयन किया । 

               ' सदसद्वादः, रजोवादः, व्योमवादः, अभ्योवादः, आचरणवादः, अमृतमृत्युवादः, संशयोच्छेवादः' 


पं. युगल किशोर पाठक का जन्म 1840 और मृत्यु 1900 बताया गया है। आप काशी के सरजू पारीण ब्राह्मण कुल में उत्पन्न हुये सुयोग्य वैदिक थे, आपके गुरू सारस्वत ब्राह्मण पंडित बाल ब्रह्मचारी रामानांद स्वामी थे। व्याकरण एवं सांख्ययोग का अध्ययन पं. अनंत राम शास्त्री से एवं कर्मकांड पं. युगुल किशोर व्यास से की थी। पं. लक्ष्मण शास्त्री द्राविण का जन्म 1857 में हुआ। पिता से कृष्णयजुर्वेद तथा गुरू भट्ट से ॠग्वेद का अध्ययन किया। इन्होंने अध्यापन शिवकुमार भवन, कलकत्ता में एवं सांग्वेद विद्यालय काशी में रामघाट पर किया, जो प्राचीन वेद वेदांग का अध्ययन कराता है। शिवकुमार भवन कलकत्ता में संस्कृत प्रचार प्रसार में संलग्न है। सन् 1990 के बाद के विद्यानों में स्वामी करपात्री, स्वामी अखंडानंद सरस्वती, पं. रामचन्द्र तारा, पं. वैद्यनाथ, पं. मार्कण्डेय शुक्ल, पं. जयराम भट्ट, पं. बाबू राम भट्ट, पं. गोपाल भट्ट, प. विंदेश्वरी प्रसाद त्रिपाठी, पं. कृष्ण देव, पं. सूर्यकांत मिश्र, डा. गोपाल चंद्र मिश्र इत्यादि विद्वानों का उल्लेख प्राप्त हुये। काशी विद्वानों की सदा सर्वदा नगरी रही है, जो धर्मरक्षक के रूप में प्रत्येक खंडकाल में दे दीव्यमान वेदांत साहित्यिक विद्वानों को जन्म देकर भारत का गौरव बढ़ाया। काशी को ज्ञानपीठ भी कहा गया है। यह साहित्यिक संस्कृति साधना की श्रोत सूत्रों के अनुसार काशी के अस्थली रही है। लोग विदेह तथा कौशल के सहवर्ती थे, पर पुरोहित एक ही थे।



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