Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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जयघोष करो

 

जयघोष करो!

दादी - दादा ने बताया
मात- पिता बैठे समझाया
दादा दादी की बातों का
जय घोष सदा करते रहना।।
अजी गुलामी -जंजीरों को
काटकर मैं बाहर आया
कच्ची मांस - मारा- मारी
स्मत बजाने की दुश्वारी।।
आजादी- गुलामी -भारी
बदनसीब बस्तियां सारी
अस्सी पर बीस ही भारी
बात-बात पे ठनगन ठाणी।।
राह- बबूल कांटे- खारे
नंगे पांव - गड़ते सारे
कॉल - मुहूर्ति -  कोसों दूर
जय घोष पर नहीं थी छूट।।
घर किसका कस टूटेगा
हौसला किनका टूटेगा
अपहरण- हत्या ऑल फूट
भोला -झोला पर भी लूट।।
होली दरबारों में मनती
खूंटी पर खुशियां टंगती
शोभा अवसादों से भरी
जीवन की बगिया में खड़ी।।
तभी अंग्रेजी शासन आया
कचहरी औ सड़क सजाया
दादा दादी ने समझाया
आपकी!  घोषणा न टूटे।।
मंदिर पर छापा डलवाया
न्याय की उम्मीदें जगाया 
राजशाही पर कसी नकेल
मानस फूट का बड़ा खेल।।
जजिया टैक्स को बढ़ाया
हमीं से लाठी बरपाया
मलेक्षों से फूट डलाया
राजाओं- महल तक आया।।
दादा -दादी यही सुनाएं
जय घोष कभी बंद ना होए।
जात- पात क जहर पिलाया
हीरा- मोती घर पहुंचाया
आजादी को प्राण गंवाए
पूर्वजों ने विगुल बजाए।।
अपना एजेंट वहीं छोड़ा
घर लूटा - तोड़ा -मरोडा
उन्हीं रास्तों को है बदलना
समझो लोगों में सुधरना।।
अपनी ऊर्जा बचाए रखना
उद्योगों पर ध्यान लगाना
योग -शोध करते को रहना
जय घोष आगे भी करना।।
आजाद तिलक को न भूलना
जननी रज माथे पर रखना
देश प्रेम से बड़ा न कोई
जन गण मन -गाते रहना।।
- सुख मंगल सिंह

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