Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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"जन्माष्टमी महोत्सव"

 

"जन्माष्टमी महोत्सव"


चूड़ियां देखी सजना, किलोल करे अंगना

सावन बीत भादों आया, बाजे ना अकेले में कंगना ।
अकेले पिया तेरे अंगना ---!
घर आंगन मधुर गीत गाती, होता जो तू सजना
खगकुल किलोल करे, जीवन क राग सुनते अपना।
नील गगन में पंख फैलाए, कांहा को कहते सब अपना,
चूड़ियां देख कर सजना, किलोल करे अंगना।
मैं अकेली पिया तेरे अंगना ---!
परदेशवा  से अइबा जो ना राउर, मायके जाब सुन सपना 
सखियन संग  अठखेली करब, कृष्ण रूप अनुपम धरब।
गौवा  चराइब चरना रे, डारब कदंब डारी पे पलना,
पिया बोलाइब तोहरा के अंगना, सजना सुन सपना।
निरा अकेली पिया तेरे अंगना --!
कमिलिनि से ताल पटा, प्रीतम मिलन की चाह वहीं
तैर तैर कदली फूल लाईब, सुंदर सरोवर जा नहाइब।
संगीत मन में ना च रही, तेरे है संभव भांप रही,
रंग बिरंगी फूल खिल उठे, जानी क्या दिशायें जांच रही।
खड़ी अकेली पिया तेरे अंगना --!
मुरझाई कलियां खिलनें लगीं, नंदागन बधाई बजने लगीं
घूमि - घूमि मोर नाचते , भोरे चंदा - चकोर नाचते!
बरसा भयी मूसलाधार, जमुना में आई भारी बाढ
संत, ऋषि, गंधर्व गाते, मिली मेंघ सब खुशी मनाते।
मैं हूं अकेली पिया तेरा रंगना --!
नंद जी के घर आए कान्हा, गंधर्व शगुन बिचारे ना कोई बाधा
बाबा लुटाए धन लगे जन लोकपाल सुन बतियाया।
'मंगल' कहें आज जन्माष्टमी, सृष्टि नियंता क दिन -रतिया,
चारों दिशाओं गूंजीं गईल बतिया,आईलबा कांधा रसिया।
मैं तो बस अकेली पिया तेरे अंगना --!!
-सुख मंगल सिंह, अवध निवासी 



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