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Dr. Srimati Tara Singh
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"हिंदी विश्व पर छाप छोड़ने वाली भाषा"

 

"हिंदी विश्व पर छाप छोड़ने वाली भाषा"


हिंदी भाषा का प्रयोग  बहुसंख्यक जनता करती है। सरकारी कार्यालय में अंग्रेजी भाषा का प्रयोग लगातार किया जाना और अपने  घरों में गुड मॉर्निंग से सूर्योदय ,सूर्यास्त गुड इवनिंग से होना , हिंदी भाषा के प्रचारप्रसार में सरकार का कदम पर्याप्त नहीं हो सकता है। हिंदी भाषा के उच्चारण पर समुचित ध्यान देना। दूसरे की गलतियों को सुधार  करना परन्तु खुद को न सुधारना। कहीं न कही हम भाषा के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं।
हिंदी भाषा के उच्चारण पर समुचित ध्यान देने की आवश्यकता पर बल देते रहने की  जरूरत है। हमें गलतियों को सुधार कर खुद भी सुधारना होगा। जिससे हमारे अंदर भाषा को सुधारने की काबिलियत आए।
हिंदी की प्रगति के लिए सरल सरस  भाषा का प्रयोग निश्चित करना जरुरी है। भाषा संप्रेषण का सशक्त माध्यम है। इसमें जीवंतता, स्वतंत्रता और लचीला पन ही प्रमुख लक्षण है। भाषा का प्रवाह जितना होगा उतना ही वह लोगों की जुबान पर जल्दी चढेगी। भाषाई आकर्षण जितना होगा उतनी ही जल्दी वह भाषा अपनाई जाएगी। हिंदी भाषा की विकास के लिए कार्यशालाओं को विकसित - शिक्षित करने की आवश्यकता है। किसी भी भाषा यह विकास में शोध कार्य की आवश्यकता होती है हिंदी भाषा के लिए भी शोध किए जाने की जरूरत है!
भारत तरक्की की ओर आगे बढ़ रहा है। भारतीय भाषाओं में विशेष रुप से हिंदी की पूछ बढ़ती गई। हिंदी लंबी यात्रा से करके हुए 1961ई में स्पैनिश भाषा को पीछे छोड़ कर दुनिया में लोकप्रियता हासिल किया और तीसरी सबसे बड़ी भाषा यह रुप में हिंदी उभर कर आगे आई। उस समय तक दुनिया भर में 47 दशमलव सात करोड़ लोग हिंदी में बोलते थे और जानते थे। आगे चलकर 2021ई में इसमें 66:6 करोड़ लोगों की जुबान तक पहुंच बना ली। जीन लोगों की मातृ भाषा हिंदी है ऐसे 53 करोड़ लोगों को छोड़कर यहां आंकड़ा प्रस्तुत किया गया है।
हिंदी बोलचाल में बढने की क्रिया 121 वर्ष के प्रचार प्रचार,सन‌् 1900 से 2021 ई तक के दौरान 175:52% की दर से हिंदी बढ़ी। जिसने अंग्रेजी भाषा की 380:71 प्रतिशत के बाद सबसे तेज दूसरे पायदान पर थी।
सन 1900 में हिंदी सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा में चौथे स्थान पर थी। जबकि मंदारिन पहले स्थान पर, स्पेनिश दूसरे स्थान पर, अंग्रेजी भाषा तीसरे स्थान पर थी।
राजभाषा अधिनियम, नियम 1969का भी रोजमर्रा की बोलचाल, संप्रेषण की संपर्क हिंदी को ही राजभाषा का दर्जा देता है।
14 सितंबर 1949 को अमर उजाला में प्रकाशित हुआ था कि
'भारत की राष्ट्रभाषा देवनागरी लिपि में लिखी जाने वाली हिंदी होगी! अंतर्राष्ट्रीय व देवनागरी अंकों का प्रयोग या जाएगा। 15 साल तक केंद्र सरकार के सारे काम अंग्रेजी में होंगें। देश की भाषा की सूची में संस्कृत को भी शामिल कर लिया गया है।'
दक्षिण भारत में सन 1988 में हिंदी का काम शुरु किया। उस समय का लाख पुरुष और महिलाओं ने हिंदी सीखी। हिंदी प्रचार सभा में लगभग 55 से 60 हजार परीक्षार्थी दक्षिण भारत के हिंदी परीक्षाओं में बैठते हैं।
हिंदी को संयुक्त प्रांत की आधिकारिक भाषा के रुप में स्वीकार किया गया है। यही वह भाषा है जिसमें आज सभी आधिकारिक नियम और अधिनियम 
पारित किया गया है।
अंग्रेजी में जो कार्य हो रहा है वह धीरे धीरे हिंदी में लिखी जाने वाली भाषा है। वाह सभी कार्य हिंदी भाषा की माध्यम से ही हो जाएगा।
हिंदी एक भाषा के रुप में सिर्फ भारत में ही नहीं अपितु यह हमारे जीवन मूल्यों और संस्कृति से संस्कार के साथ ही सच्ची संबाहक -संप्रेषक और परिचायक है। हिंदी विश्व की वैज्ञानिक भाषा भी है। जिसे चाहने समझने बोलने वाले बड़ी मात्रा में दुनिया में मौजूद हैं।
हिंदी प्राचीन सभ्यता आधुनिक प्रगति और पारंपरिक ज्ञान के बीच एक सेतु का काम करती है। संविधान की आठवी सूची में 31 भाषाओं में यह विशेष स्थान पर है।
हिंदी संबाद की भाषा है अनुवाद की भाषा नहीं है ! अन्य भाषाओं की भांति भी मौलिक सोच की भाषा है।
   आजादी मिलने के बाद भारत में हिंदी पक्का हिंदी दिवस के रुप में मनाया जाने लगा। इसका मकसद मात्री का स्मरण दिलाता है कि भारतीय गणराज्य की राजकीय भाषा हिंदी है। यूनेस्को की साथ भाषाओं में हिंदी को भी मान्यता मिली है। हिंदी जन आंदोलन की भाषा रही है। वैश्वीकरण  के इस दौर में हिंदी का प्रयोग बढ़ा है। विश्वास पर पर यह एक प्रभावशाली भाषा के रुप में स्वीकार की गई है। भारत सभा का लगातार प्रयास रहा है कि हिंदी भाषा के मुताबिक युवा पीढ़ी को रोजगार दिया जा सके। कहां गया है कि-
भाषा वही जीवित रहती जिसका प्रयोग जनता करती है। हिंदी बाल के लिए सबसे बेहतर माध्यम है।
मुंबई विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के प्रोफ़ेसर डॉ करुणा शंकर उपाध्याय के अनुसार 'गूगल बार 7 साल में हिंदी सामग्री 95 प्रतिशत की दर से बढ़ी है।
हिंदी में google पर 10 लाख करोड अपनी क्लब हैं!'
 *विदेशों में ही हिंदी 28 हजारे भी अधिक शिक्षा संस्थाओं में सिखाई जाती रही है।
*भारत देश से बाहर विश्वविद्यालयों में लगभग 260 वि. वि. हिंदी पढ़ाई जा  रही है।
*दुनिया के टॉप 10 सबसे ज्यादा पढ़े जाने वाले पेपर में हिंदी छठ वें स्थान पर है।
काशी हिंदू विश्वविद्यालय वाराणसी के पूर्व विभाग अध्यक्ष का मानना है कि'
 अहिंदी भाषी फिल्मों की डबिंग से हिंदी का बाजार तेजी से बढ़ रहा है। आपने मीडिया एवं जनसंपर्क विषय पर हुई राष्ट्रीय संगोष्ठी में अपने विचार व्यक्त किए। पब्लिक रेलवे सोसाइटी के चेयरमैन डॉ आर सिंह ने कहा कि '
भाषा का संबंध सोशल मीडिया के कारण शुद्ध रुप से नहीं वो पा रहा है।'
जबकि देखा जाए तो सोशल मीडिया ने दुनिया में हिंदी को सिनेमा के बाद सबसे अधिक लिखी पढ़ी और समय भाषा के रुप में विकसित और पल्लवी हो रही है।
अंतर्राष्ट्रीय महात्मा गांधी हिंदी विश्व विद्यालय वर्धा से कुलपति डॉ रजनीश शुक्ल ने मुख्य वक्ता के रूप में
एक कार्यक्रम में बाराणसी पधारे थे जिसमें वे बोले कि 'संचार तभी सफल होता है जब वक्ता कि कहीं हुई बात श्रोता के गहने उतर जाए।'
हिंदी राष्ट्रभाषा के साथ ही विज्ञान के क्षेत्र में भी विकसित होगी तभी देश का विकास होगा।
हिंदी को राष्ट्रभाषा से अधिक राजकीय भाषा अथवा राजभाषा का जाने लगा है। इन द्वारा जो में सूचनाओं एवं पत्र व्यवहार के लिए हिंदी को ही संपर्क भाषा माना जाता है। हिंदी को लेकर संविधान सभा में काफी बहस भी हुई है। भारतवर्ष में विद्रोही, आंदोलन और स्वाधीनता आंदोलन लेकर दे सकते हैं। हिंदी का वर्चस्व सदा ही रहा है। रामानंद जी की पहली रचना हिंदी में ही मिलती है। उन्होंने दक्षिण भारत से ऊपर भारत में भक्ति आंदोलन लाए।
यथा -
उप जी लाए रामानंद,
प्रकट किया कबीर ने!
सात दीप नौखंड।
रामानंद जी ने यहां की भाषा में अपनी भक्ति का प्रचार-प्रसार किया।
स्वतंत्रता आंदोलन के समय सन 1857 ई. के दौरान हिंदी और उर्दू दोनों का प्रयोग होता रहा।
बहादुर शाह जफर एक शेर में कहता है कि
हिंदियों में बू रहेगी जब तलक ईमान की।
तख्ते लंदन तक चलेगी तेग हिंदुस्तान की।
वली दक्कनी! यू दक्षिण भारत से दिल्ली आया था वहां अपनी भाषा लेकर आया जिसे हिंदुस्तान में दकनी हिंदी के नाम से जाना जाता रहा है। जबकि उसे दक्षिणी हिंदी कहीं या सकती है। परंतु उसे आजकल उर्दू वाले अपनी भाषा मानते हैं इसलिए दकनी उर्दू के शायर थे।
पुरषोतम दास टंडन से पहले गालिब और मीर ने जिस हिंदी शब्द का प्रयोग किया वह भाषा विशेष के रूप में हिंदी थी। 
आजादी के बाद हिंदी का विश्वविद्यालयों और सरकारी संस्थाओं में प्रचार प्रसार तेजी से बढ़ गया। आजकल हिंदी भाषा का अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रचार - प्रसार हो रहा है।
हम सभी को यह ध्यान में रखना कि भाषा जब अवसर बाद से मुरैना सोनू कर देती है तब उसके विवेक हीन होने का खतरा बढ़ आता है। ऐसी स्थिति में भाषा का विकास भी रुक जाता है। भाषा का विकास जोखिम उठाने पर ही होता है। हिंदी आंदोलन की भाषा तो रह ही साथ साथ वह दरबार की भी भाषा रही है।
हमारी सांस्कृतिक भाव भूमि हमारी मानसिकता का परिणाम ही था कि हिंदी को संपर्क भाषा या राजभाषा के रुप में स्वीकार किया गया।
1963 25 अप्रैल अमर उजाला ने प्रकाशित यह आर्टिकल में कहां गया कि तात्कालिक प्रधानमंत्री ने कहा मैंने जो आश्वासन दिया कि अ हिंदी भाषी लोगों की अनुमति के बिना अंग्रेजी के प्रयोग के संबंध में कोई बड़ा परिवर्तन नहीं होगा, उस पर हम पूर्णतः कायम हैं। लेकिन अंग्रेजी राष्ट्र भाषा नहीं हो सकती।
लाहौर से काशी में आकर बसा वंशज और कपड़े का व्यापार! पूर्व में पूर्वजों को टकसालियो के नाम से जाना जाता था। पिता लाला देवीदास और माता श्रीमती देव की देवी यह संजोग बस प्रतिभाशाली पुत्र श्याम सुंदर दास बचपन से ही होनहार बालक था। जिसने प्लीज कॉलेज वाराणसी में इंदर की सन् 1894 ई. मैं परीक्षा उत्तीर्ण की। अपने मित्रों पंडित राम नारायण मिश्र और शिवकुमार सिंह के साथ 16 जुलाई 18 सौ 93 इस बी में नागरी प्रचारिणी सभा , वाराणसी में स्थापना की, जो उनके हिंदी प्रेमी होने का परिचय दिया है। सन् 1921 में काशी हिंदू विश्वविद्यालय वाराणसी के हिंदी विभाग का विभाग अध्यक्ष बन कर एम ए,बी एक हकीकत झांका पाठ्यक्रम निर्धारित करने का कार्य किया और सन् 1928 में काशी हिंदू विश्वविद्यालय की हिंदी विभाग में सोध कराने की व्यवस्था की।
श्याम सुंदर दास जी के कार्यों की सूची में  संक्षेप में वर्णन है कि
*हिंदी के प्राचीन महत्वपूर्ण ग्रंथ उनका संपादन  किया। 12 भागों में प्रकाशित किया हिंदी शब्दकोश, और भी पृथ्वी राज रासो! सोलह भाग में हिंदी साहित्य का इतिहास प्रकाशित कर आया जो मुख्य ग्रंथ के रूप में। ्चा्ली्सा्चा्ली्स्चा्ली्सा्चा्ली््चा्ली्सा्चा्ली्स्चा्ली्सा्चा्ली
* आपने कोलकाता प्रयाग आदि अनेक विश्व विद्यालय यों के परीक्षक रहे।
* हिंदुस्तानी अकादमी के सदस्य में निर्वाचित या गया प्रांतीय सरकार की तरफ से।
*अंग्रेज सरकार ने राय साहब की उपाधि आपको दी हिंदी सेवा से प्रसन्न होकर सन 1927 ई. में! 
*साहित्य वाचस्पति यू बाड़ी हिंदी साहित्य सम्मेलन प्रयाग ने दिया।
*काशी हिंदू विश्वविद्यालय ने आपको डी लिट् उपाधि से सम्मानित किया।
*आपने हिंदी के गद्य लेखकों की जीवनियां प्रकाशित की शादी उनके साहित्य की प्रमाणिकता ंं  परिचय लिखनें में सफल रहे।
* आपने हस्तलिखित ग्रंथों की खोज रिपोर्ट और उनका सम्मान  जनक सार प्रस्तुत किया।
* आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी,  युग के संस्थापक भी कलम से प्रस्तुति पंक्तियां -
मातृभाषा के प्रचारक,
विमल बी.ए. पास ।
सौम्य शील निधान,
बाबू श्याम सुंदर दास।
राष्ट्रीय कवि मैथिलीशरण गुप्त जी ने श्याम सुंदर दास के संपूर्ण 50 वर्षों की सेवा को उनके नाम अर्पित करते हुए लिखा कि -
मातृभाषा के हुए जो,
विगत वर्ष पचास।
नाम उनका एक ही है,
श्याम सुंदर दास।।
हिंदी  लिखते और बोलते समय कुछ लोग संस्कृतनिष्ठ तत‌् सम शब्दों का प्रयोग करते हैं। और कुछ लोग अरबी - फारसी व तुर्की यह शब्दों का इस्तेमाल करते हैं। जहां तक हिंदी भाषा में बातचीत करने का सवाल है तो दोनों  का मिला जुला रूप ही देखने को मिलता है। जिस पाठ को आपने पढ़ा है उसकी शैली देखने पर दोनों का मिला जुला रूप मिलेगा।
हिंदी और उर्दू के सामान्य कुछ शब्द हैं जो -
हिंदी भाषा    उर्दू भाषा
आवश्यकता - जरूरत
प्रवेश    -  दाखिला
प्रयास    ्-  कोशिश
शब्द     -    लफ्ज
महसूस    - एहसास
मस्तिष्क   - दिमाग
स्वप्न       -  ख्वाब
जीवन    -   जिंदगी
विवशता -    मजबूरी
ठीक      -    सही
बातचीत -   गुफ्तगु
घरेलू बातचीत में और दोस्तों से वार्तालाप आदि में औपचारिक भाषा का प्रयोग होता है। परंतु सभा - सोसाइटी, कार्यालय में, विशिष्ट प्रयोग विषयों पर चर्चा परिचर्चा की भाषा औपचारिक होती है परंतु उस में शब्दों का प्रयोग अत्यंत सावधानी से करना पड़ता है। कुछ पेशों से जुड़े व्यक्ति दूसरों से छिपा कर अपनी बात कहने के लिए गुप्त भाषा का प्रयोग करते हैं। इन लोगों की शब्दावली सामान्य भाषा से भिन्न होती है। जिसे समझने के लिए हमें उस पर अध्ययन कर ने की आवश्यकता होती है।
भाषा की शब्दों की एक मुख विशेषता होती है। कि वह अर्थ युक्त होना चाहिए। शब्दों के माध्यम से ही हम अपनी बात लोगों से कर सकते हैं। शब्दों का इतिहास बहुत रोचक है। शब्दों का अपना अर्थ होता है। शब्दों से बने वाक्यों का भी अपना अर्थ होता है। जब शब्दों का प्रयोग वाक्य की संरचना में सही किया जाता है तो वाक्य के अर्थ को हम सही ढंग से समझ पाते हैं। शब्अदध्यक  से बनते
- सुख मंगल सिंह, अवध निवासी 

Sukhmangal Singh 

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