Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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गुमनाम हो लोग

 

गुमनाम हो लोग

लोग अपने आप से ही
गुमनाम होते जा रहे हैं।

मां कौन, कौन मेरा मन
बाप बाप कहते जा रहे।

आकुल हो रहे आपसे ही!
जिसे देखो मैं में व्याकुल ।

खाय जा रहे खुद से ही
प्रकृति का दोहन कर रहे।

नाटक का रोल करते हैं
करने खाने वाले भी लोग।

अव्यवस्था - अव्यवस्थित
जानो कर लिये सब लोग।।
- सुख मंगल सिंह 

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