Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

" दशमुख रावण का अंत "

 
" दशमुख रावण का अंत "

वह समय रामा विनाशक आ गया है,
देवताओं ने जैसा कि बताया है।
अनजाने सा  राम जी बाण न चलायें,
अस्त्र निवारणार्थ मात्र नहीं उठाएं।।

ब्रहमा के दिए हुए ब्रम्हास्त्र जो चलाएं,
मातलि ने वाक्य श्री राम  को बताए।
 फूफकारते सर्प समान बाण उठाया,
उसको राम ने अपने हाथ से चलाया।।

जिस बाण को पहले अगस्त ऋषि ने,
हां! रघुनंदन जी को दिया हुआ था।
जिससे सूरज समान ज्योति निकलती,
संपूर्ण भूतों के तेज से निर्माण हुआ।।

अग्नि के समान भयंकर प्रलय कारी,
दीप्त विषधर कालसर्प सा विषैला था!
हाथी - घोड़ों को विदीर्ण करने वाला,
शीघ्रता से लक्ष्य भेेदन करने वाला था।

उसके भेदन के आगे पर्वत ना टिकते,
गरुण रूप, पंख युक्त था बना हुआ।
अभि मंत्रित कर निज धनुष चढ़ाया,
धरती डोल उठी और प्राणी थर्राया।।

कुपित मन से श्री राम ने बाण उठाया,
आकाश से धरती तक देवता घबराए।
बाण  रावण की छाती भेेदन को धाय,
श्रेष्ठ बाण छूट ते ही दुष्ट विदीर्ण हुआ।।

ब्रहमा का दिया बाण पूरा काम किया,
हरकर उसका प्राण धरती में समा गया।
श्री राम को दिया जो उसने पूरा किया,
विनीत वह राम के तरकश में आ गया।

दश मुख को धरा पर पड़ा देख कर,
सारे निशाचर उसका भाग गयो।
उधर विजय से सुशोभित रामा दल,
वानर श्री राम की जय जय घोष किए।

मंद मंद गतिशील वायु सुगंध बिखेरने लगा,
आकाश में मधुर स्वर से दुंदुभियां बजने लगी।
देव मुख से श्री राम जी की स्तुति सुनाई देने लगी,
अंतरिक्ष से श्री राम जी के रथ पर पुष्प वर्षा हुई।।

- सुख मंगल सिंह


Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ