Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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चलो गांव चलें!

 

चलो गांव चलें!


शहरों की आपा धापी देख,
अब गांव का रुख करता हूं।
गेहूं के साथ घुनो पिसाला,
गांव - भाषा पर शोधकर्ता हूं।।

की यह हंसा मोती चुने,
की भूख से मर जाए।
दादा कहले सरसउवे लादिहा,
लकीर के फकीर भले हो जाए।

सब धान वाइसे पसेरी विकेला,
भईया कहें ऐसे गांव में रहेला?
दुधारु गाय के लतावो सहल जाला,
गांव की माटी में दिल का लाडला।।

आपन भला तो सब चाहे ला,
आप इज्जत अपनी हाथ में ह अ!
बड़ संग रहिय त खैहैं  बीड़ा पान,
छोटे संग रहिय त कटहैं दोनों कान।। 

अपनी गली में त एगो कुत्तों शेर होला,
गांव वालों के ऊपर सबै ढ़ेर से रोवेला!
हाथ पे पैसा रहेला त बुधियो काम करेला,
अपन पेटवे  सब कुछ काम करावेला।।

पेट कबों नाही भरेला, भर पेट भोजन  त करेला,
पेट के खातिर दर दर, मनई भटकल करेला।
कुछ ऊपर देश क नेता, अयिसन वइ सन कहला,
ठीक कहल के, जैसन खाई अन्न वैसन  रही मन।।

बेटी की बेटा कौने काम का,
खाईहैं इहवां चेतिहैं गांव!
आप बेटा परदेश विधान,
झाड़ फूंक कर करे निदान।।

काछ कसौटी सांवर बान,
ई छाडि मति किनिंह आन।
लाल, पीयर जब होखे अकास,
तब नईखे बरसा के आस।।

धान गिरे बढ़ भाग्य,
गेहूं गिरे  दुर्भाग्य।
खेती होती अपनी भाग्य,
जिसे विधाता के सौभाग्य।।

खड़ी खेती, गाभिन गाय,
तब जाना जब मुंह में जाए।
आज हमारी, कल तुम्हारी,
देखा लोगन, बारी - बारी !!

जइसन काकर, ओइसन बीया,
जइसन माई, ओइसन घीया।
बोहैं के बबूल, खोजिहैं आम,
माथे पे चढ़ के, ओसइहैं धान।।

नाचने न आ वे आंगनवा़ टेढ़ा,
 चाल चले सादा,निभे बाप दादा।
सफेद और काला कोट से दूरी,
सूखी जीवन में लिए बहुत जरूरी।।

राम मिलाए बड़ जोडी,
इक आंहर हर इक कोढ़ी।
चले हल नहीं चले कुदाली,
बैठ के भोजन देय मुरारी।।

जे माथ झुकाय के करे प्रणाम,
वही से मांगे शराफत के प्रमाण।
जेकर निगाह थोड़ी तिरछी आंखें,
टिक नहीं सके दुश्मन की छाती।।

दोस्ती हो या हो दुश्मनी,
सलामी देर से अच्छी होती!
थोड़ा-थोड़ा जोड़ो और
मुनाफा कभी ना छोड़ो।।

बाढ़ें पूत पिता की धर्मा,
खेती- बढ़े अपने कर्मों।
जो खेती किसानी करी,
वही के घर अन्य भरी।।

कान का कच्चा भैनैं पांडे,
दोनों लोक से गैनेन पांडे!
न हलवा मिले ना माड़, 
ठाढ़ भैलेन मानो साड़।।

आगे नाथ न पाछे पगहा,
खाय मोटाय के भइनैं गदहा।
भगवान की यह है माया,
कहीं धूप और कहीं छाया।।

करनी ना तो धरनीं,
धियवा ओठ विदोरणी।
कल की अभी छोकरि,
करने चली आई उसौनी।।

नाच ना आवे आंगन टेढ़ा,
हमारी बिल्ली हमी को म्याऊं।
ना रही बांस न बजी बधाई,
पहिरब जूता चप्पल हटाई।।

काठ के हाडी बार-बार नहीं चढेला,
एक बार देखकर समाज भांप लेला।
घर फूटे से गवार लूट लेते हैं
रोज आमिर की कुआर लूट लेते हैं।।

बाप ओझा अवरो माई दाइन,
रोज कुआं खोदत और पानी आई।
आसमानी में थूकब त मुहनवें पे आई,
घर पर बैठ गयल सागर से जमाई।।

सैंया भयल कोतवाल डर काहे का,
आदमी के काम ह अ ए गलती कइल।
अर्क क धनियां भुइया रहे कि कनियां,
शहर से गांव चलें गांव में दुग्ध बहल।।

पहले दिन पहुना,दूसरे दिन ठेहुना,
तीसरे दिन केहुना,चौथे दिन रहना?
लाठी कपारे भेंट नाहि बाप बाप चिल्लाए,
बहु वंश से भला निर्वंश ही अच्छा  प्रसंग लाए!

- सुख मंगल सिंह





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