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Dr. Srimati Tara Singh
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बूढी मां

 

बूढी मां

जानकी बूढी हो चली थी उसकी उम्र 62 साल की हो गई थी अब वह बीमार रहने लगी थी। उसके पास लड़की और लड़कियां थी जो अब अपने-अपने नौकरी में लग चुके हैं। लाल उसका बड़ा लड़का था जिसे वह बड़े दुलार प्यार से पालन पोषण किया था क्योंकि वह पहला पुत्र था जो कई वर्षों के बाद जन्म लिया था पढ़ने में बहुत अच्छा नहीं था परंतु संस्कारिक था।  जानकी के पति का नाम रामनाथ है।रामनाथ सरकारी नौकरी करता था जो कुछ दिनों से रिटायर हो चुका है। रामनाथ जानकी को खर्चा वर्षा के लिए नौकरी से प्राप्त सभी रुपए दे दिया करते थे और रिटायर होने के बाद भी जो पैसा बैंक से एटीएम के द्वारा निकलने वह जानकी के हाथ पैर रख देते थे इसके बाद जानकी से मांग कर ही वह कोई भी खर्च किया करते थे।
जानकी को आशा थी कि उसका लड़का लाल एक दो साल में कमाने लगेगा और परिवार को संभालने लगेगा मगर क्षमा करिए वह पढ़ाई के उपरांत नौकरी तो करने लगा परंतु यह कहकर कि यदि रुपया पिताजी को यानी रामनाथ को दे देंगे तो वह सब खर्च कर डालेंगे और वह एक भी रुपया अपने पिता को नहीं देता था जबकि उसे उसके पिता बैंक से लोन लेकर अपने बच्चों को पढ़ाई थे और आशा रखते थे यदि बच्चे नौकरी करने लगेंगे तो वह हमें जो कुछ देंगे तो उसे गांव पर मकान आज बनाने में खर्च करेंगे ताकि गांव वाले भी समझे कि इन्होंने अपने बच्चों को इतनी मेहनत से पढ़ाया तो उनके बच्चे काफी अच्छे निकले और गांव में भी इन्होंने अच्छा मकान अच्छा बैठता आज बना रखा है।
लाल की माता बड़ी ही धर्मात्मा विवेक और न्याय पूर्ण थी साथ ही साथ वह बहुत ही मिलन सार है। लाल नौकरी करनी लगा था अपनी पत्नी को साथ ही रखता था उसकी बच्चे भी वो चुके थे और धीरे-धीरे वह व्यवहार में बदलने लगा था।
देश के प्रति कर्तव्य का
मद क्रोध में भूले रहते हैं
माता पिता के आदेश को
बुढ़ापे की सोच कहते हैं।
संस्कार संस्कृति और व्यवहार में कुछ बदलाव अलग प्रांत में जाने पर प्रायः वो ही जाता है परंतु स्वामी विवेकानंद जी ने कहा था कि दूसरे की सभ्यता को जोर से ज्यादा अपनी सभ्यता को के ऊपर थोपो।
जब लाल अपनी गांव पर जाता तो उसकी चाची उसके खाने को देखकर कहती बहुत खाते हैं। नहाने को उसकी इच्छा होती तो चाची उसके सामने से साबुन उठाकर अपनी कमरे में रस देती थीं। वह झल्लाता परंतु कुछ बोलता नहीं क्योंकि वह बड़ों का आदर करना जानता था। लाल की चाची कहती हिसाब लगा के काम नहीं बल्कि तुम्हारा काम पढ़ना है पढ़ो। परंतु लाल ऐसी दुर्व्यवस्था पर उठता और अपनी मां जानकी से शिकायतकर्ता है। जानती समझाती कि बेटा वह तुम्हारी चाची है कम पढ़ी  लिखी है। देश परिवार की मर्यादा बचाने का काम विशेष रूप से संपन्नता और सुख देने वाला होता है। जब रात की आवेश में हम कभी कभी उच्छृंखल हो जाते हैं तब समाज घर परिवार सभी दोस्त दिखाई देने लगता है।
कुछ दिनों के लिए वह गांव गया था। गांव से बाहर आया और शहर में अपने माता-पिता के साथ रहने लगा जब नौकरी लगी तो हुआ दूसरे प्रांत में लगी और वहां अपनी बच्चों के साथ रहने लगा है।
एक दिन जानकी है अपने लाल को बुलाकर समझाया और कहा -
छोड़ दो उन विचारों को
तुमको जो भ्रमित करते हो न
काम करो उन वीरों जैसे
जो देश का नाम करते हैं।
लाल नई अपनी मां से हामी भर दी जैसा कि प्रायः सभी लोग करते हैं।
लाल अपनी माता से लगभग रोज मोबाइल से बात किया करता था। अपना सुख दुख और परिवार की बातें शेयर किया करता था। एक दिन किसी बात को लेकर वह मां को कुछ ऐसी बातें कर दिया कि मां को आंसू गिरने लगीं। और राधिका कुछ ही देर में मोबाइल बंद करके फफक फफक कर रोने लगी।
सुबह का समय था राधिका का दिन खराब हो गया मां मां  होती है मां की ममता -स्नेह -सद्भाव-का विचार फिर भी नहीं बदला परंतु वह सोचने लगी किस जन्म का कौन सा काम था जो मेरा लाल मुझे विश जैसे है कि बातें कर रहा है।
लाल अपनी नौकरी पर जाता है और रास्ते में एक पेड़ की डाली उसके सिर पर आकर गिरी है ईश्वर जी की कृपा से वह बाल बाल बच गया। और घर लौट कर सारा वाकया अपनी पत्नी को सुनाया।
इसीलिए कहा गया है कि -
पुत्र कुपुत्र हो सकता है
माता कुमाता नहीं होती है।
-सुख मंगल सिंह

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