Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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ब्रह्मा को भगवद्दर्शन

 

ब्रह्मा को भगवद्दर्शन

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ब्रह्मा जी की  कठिन तपस्या से 
नारायण  खुश हो जाता 
जो नित नियमित नर पढता 
उसका कल्याण है  होता ।

उसके  गुण में रम जाने पर
यह मैं हूं ,यह मेरा न कहता !
क्षुब्ध गुणों को करने वाले 
काल - मोह पाश ना बंधता। 

दोनों से परे होकर अनंत तक जीव 
मोह रहित अंत तक स्व  में रमता।
उमके निष्कपट तप से प्रसन्न हो 
प्रभु ने  अपने रूपका दर्शन कराया।
ब्रह्मा जी ने आत्मतत्व ज्ञान पाया 
परमार्थ सत्य परम उपदेश सुनाया।

कभी जभी  राममय हो जाए   आत्मा
मैं मेरा छोड़ गुणातीत मिला परमात्मा !
आदि देव ब्रह्मा जी सुने  अपनी आत्मा  
आगे कार्य शुरू करने का मौका पाया | 

सृष्टि रचना करने का था अधिकार पाया    
बैठ कमल, जन्म स्थान में मन लगाया।

तंहां नारायण जी आये
खुशियां साथ में लाया।
ब्रह्मा को ब्रह्मज्ञान सिखाया
गुरु श्रेष्ठ देवों को भी भाया।

अतः करण कृपाला , मुसकाया
स्वपनावस्था से इन्हें जगाया।
अतः करण विशुद्ध उनका कराया
आत्मा ब्रह्म जी को समझाया।

भेद - विभेद का त्याग सिखाया
श्रद्धा  - मैत्री - दया दिखाया ।
साथु समाज शिरोमणि आया
ब्रह्माजी ने खुद को समझाया।

विषय - बिकार मिटाने वाला
साक्षात भगवान दिखलाया।



ध्यान से सृष्टि निर्माण होगा
ऐसा विचार वे मन में लाये।
व्यापार के लिए सृष्टि जरूरी
अपने घर को लौट समझाते।

पर दिव्य तेज प्राप्त न होने से
चिंता कर चित्त एकाग्र लगाते।

चिंतन और मनन करते ही
प्रलय - समुद्र में लहर उठी !
लहरों के ' त ' व ' प ' अक्षर से
तप करो! तप करो! श्वर निकला।

इधर - उधर वे बक्ता को ढूढा
 अचंभित हो चारो ओर  देखा।
कोई दूसरा  वहां नहीं दिखा
मन बना तब  तप- व्रत किया।
 
तपस्वियों में सबसे बड़े तपी ब्रह्मा 
तप - बल से अमोघ ज्ञान मिला।
कर्मेंद्रिय - ज्ञानेन्द्रिया  कर वश में
समस्त लोकों को प्रकाशित किया।

माया प्रभाव में आकर विविध रूपों
में नारायण ने था  रूप  दिखाया।
कठिन  तपेस्या देखकर ब्रह्मा की
उनको   प्रभु ने  सच उपदेश सुनाया।

- सुख मंगल सिंह,अवध निवासी


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