Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

बिल्व पत्र और रुद्राक्ष

 

" बिल्व पत्र और रुद्राक्ष"


बिल्व पत्र शिवजी को बहुत ही प्यारा,
बिल्व पत्र के अधोभाग में पुण्य सारा।
संक्रांति में बिल्व पत्र को नहीं तोड़ते,
याज्ञ वल्य महर्षि ने जनक को बताया।

स्नान करके बिल्व पत्र छोड़ना चाहिए,
पर्व पर भी कभी नहीं तोड़ना चाहिए।
बिल्व दल से शिव अपार पुण्य देते हैं,
वृक्ष तरु दीपक जलाने से शुभ लाभ मिलता।

  देवी लक्ष्मी के तप के फल से ही,
बिल्व वृक्ष का आविर्भाव हुआ।
बिल्व वृक्ष को ही श्री वृक्ष भी कहते,
लक्ष्मी वृक्ष बिल्व वृक्ष कहलाया।

नीले कुमुद में पार्वती देवी और
कुमुद सफेद में कुमार स्वामी जी!
बिल्व में लक्ष्मी देवी का बास है,
कमल से शिव सदा करते निवास।

वही मेरा प्रिय भक्त है होता
सिर और कंठ में जो रुद्राक्ष पहनता।
पंचाक्षरी मंत्र निरंतर जगता रहता,
पद्म पुराण में परमेश्वर यही कहता।

त्रिपुरासुर बध में आंखें जब प्रभु मूदा,
नेत्रों से जल विंदु धरा पर जो गिरा।
उसी से रुद्राक्ष पैदा धरती पर हुआ,
रुद्राक्ष की महत्ता शास्त्रों ने भी किया।
उसके स्मरण से गोदान का फल मिलता,
जावालोप उपनिषद में परमेश्वर बहिर्गत किया।।

- सुख मंगल सिंह

Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ