Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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आत्मकथा !

 

आत्मकथा !


मैं क्या हूं! मैं प्रत्यक्ष हूं! पहले मैं क्या था  इसका कारण  ज्ञात बहुत कम लोगों को है। यहां तक कि मेरे मित्र, मेरे हितैषी को भी, बहुत कम ही जानकारी है। मुझ में लिखने का शौक बचपन से ही है। आप भी लिख रहा हूं। आशा है आगे भी लिखता रहूंगा। मैं जिन साइड ऊपर दिखता हूं अथवा जो लोग हमारे आलेख, रचनाएं टिप्पणियां प्रकाशित कर रहे हैं। उनके द्वारा भी प्राय: हमें अपने बारे में आत्म कथा लिखने के  लिए कहा जाता रहा है। वे सभी महानुभावों के अंदर उनका केवल मकसद है कि मैं अपनी जीवन कथा लिख डालूं । परंतु पूर्ण रूप से स्वीकार कर उनके आज्ञा का पालन करूं ऐसी स्थिति मेरी नहीं है। मेरे अंदर बाहर वह सब कुछ विद्यमान है? अपने जीवन की कथा कहते हुए मुझे संकोच भी लगता है। यही कारण है कि मैं कुछ साइड पर आंशिक रूप से अपने जीवन में घटित घटना के माध्यम से जो कुछ लिखा उसे पोस्ट किया है।
    मेरी जीवन कथा में से कोई बात  सीख भी तो नहीं सकता। मानव मन गतिमान है। अपने मन का चलने वाला। बातें करता है नीक नीक। रहता है मानो मतवाला। 
      जिन-जिन लोगों ने मुझको अपना कृपा पात्र बना लिया है उन लोगों की आज्ञा का उल्लंघन करना भी धृष्टता ही होगी।यद्यपि हमने कुछ लोगों को अपने जीवन से संबंधित कुछ बातें मोबाइल गेम माध्यम से भी शेयर कर दिया है। फिर भी इस अवसर पर मैं अपने जीवन से संबंध रखने वाली कुछ बातें ऐसी क्रमश: सुना देना अपना कर्तव्य तक समझता हूं।
     बहुत बड़े-बड़े लोगों ने हमारे जीवन से संबंध रखने वाली बातों को सुनने के लिए बड़े-बड़े मैदान पहले से ही साफ सुथरा कर रखा है। मेरे द्वारा बताई गई कथा सुनने से आने वाली पीढ़ियों को भली भांति फल  प्राप्त भी हो सकती है। आज मैं उस व्यक्ति का जिक्र कर रहा हूं जिसे काशी ही नहीं संपूर्ण विश्व अभिनंदन करते लगातार चला रहा है। अभिनंदन का पात्र कोई खुद ही नहीं हो जाता है। जिस पर ईश्वर की कृपा होती है वहीं उसका पाद होता है। बिना उसके पत्ता भी नहीं हिलता है। वह  'मंगल ' अवध निवासी कहां तक इसका बात है यह सब कुछ मैं नहीं आप कह कर सकते हैं। सच बात तो यह है कि मैं पवित्रा नदी सरयू , साधु संतों का यही निवास  स्थान, पर तीन किलोमीटर  दूरी पर स्थित छोटे से गांव में एक किसान का बेटा हूं।जिसके पास खेती के अलावा पैसे का और कोई भी श्रोत नहीं था। उन दिनों खेती बहुत परिश्रम से होती थी। खेती करने के साधन का बहुत बड़ा अभाव रहता था।
     अपने गांव से एक किलोमीटर दूरी पर एक मुबारकपुर अंजन नाम के प्राइमरी पाठशाला में मेरा जाना हुआ था। इसी प्राइमरी पाठशाला में प्रथम शिक्षा ग्रहण करने का मौका मिला है। उस प्राइमरी पाठशाला में दो कमरे कच्चे मिट्टी के दीवाल के बने हुए थे। जिसको खपरैल से छाया गया था। स्कूल के दोनों कमरे भी जीर्ण शीर्ण  अवस्था में ही उपलब्ध थे। वह प्राइमरी पाठशाला अंतर्गत ग्रामीण क्षेत्र में स्थित, जर्जर अवस्था में पहुंचे, राम भरोसे  वाले दिनों
कमरे को देखने से लगता था कि भारत के पूर्व गुलामी काल का इतिहास भूगोल लिख रहे थे, वे पुराने कच्चे घरों की दीवालें । उस समय तक स्वतंत्रता के 15 -16 साल बीत चुके थे फिर भी ग्रामीण क्षेत्र की प्राइमरी पाठशाला की दशा दयनीय थी। घास फूस की बनी प्राइमरी पाठशाला के दक्षिण तरफ एक  छप्पर की मड़ई थी। जिस समय मेघ देवता आसमान में छा जाते त्राहिमाम मच जाता और यदि कुछ बूंदाबांदी होने लगती उस समय   मानो पहाड़ ही टूट गया ही ! पाठशाला  के बच्चे कुछ तो उन बने हुए जो दो  घरों में और मड़ई में खूब-खूब कर भई भर जाते थे। शेष बचे हुए बच्चों को पास के हरिजन बस्ती में शरण लेने को मजबूर होना पड़ता था। बड़ी ही हालत बच्चों की खराब हो जाती थी। जब कि उस प्राइमरी पाठशाला में उन दिनों बहुत अच्छी पढ़ाई हुआ करती थी।  पाठशाला में छात्र - छात्राएं दोनों मिलकर एक साथ पढा करते थे। यद्यपि  टाट - पट्टी पर बच्चे बैठ कर पढ़ते थे। मास्टर लकड़ी की बनाई गई कुर्सी पर बैठ कर पढ़ाते थे।  पाठशाला की मास्टर बहुत मेहनत के साथ अपने बच्चों को पढ़ाते थे वे सभी बच्चों को अपना बच्चा समझते थे। उनके भविष्य का उन्हें ख्याल रहता था। बच्चों के भविष्य को निखारने के लिए अथक प्रयास करते थे उस समय के मास्टर! वह  स्कूल जिसमें मैंने प्रथम पढ़ाई शुरू की वह आम के घने पेड़-पौधों के बीच स्थित था। प्राइमरी पाठशाला के उत्तर तरफ खेती होती थी। उन्हीं खेतों के बीच आम का एक ऐसा वृक्ष मौजूद था जिस पर फल बारहों मास में मिलता था। ईश्वर की लीला बड़ी सौगात दिए हैं।
    प्राइमरी पाठशाल मुबारकपुर अंजन में कक्षा तीन तक अध्ययन करने का मुझे शुभ अवसर मिला। इसी बीच मेरे गांव में ही प्राइमरी पाठशाला तीन आम के पेड़ और एक पीपल के वृक्ष के नीचे खुल गया। वही पेड़ों की छांव में कक्षा तीन से कक्षा पांच का की पढ़ाई पूरी हुई।जहां तक मुझे याद है पहले पहले मास्टर लाल मन सिंह जी ही उस पाठशाला में प्रथम तैनात किए गए थे। जो पास के गांव सिकरारा के थे । उस प्राइमरी पाठशाला में प्रथम गुरु के रूप में मिले। प्राइमरी पाठशाला में पढ़ाई के साथ साथ खेल कूद भी करा जाता था। अंताक्षरी होती थी। अच्छी-अच्छी कहानियां मास्टर सुना या करते थे जो बच्चों का मनोबल बढ़ाने वाला होता था। प्रथम प्रेयर ( प्रार्थना ) होती रही   - 
वह शक्ति हमें दो दया निधे कर्तव्य मार्ग पर डट जाएं । 
पर सेवा पर उपकार में हम जगजीवन सफल बना जाएं ।
छल दम द्वेष पाखंड झूठ अन्याय से निश दिन दूर रहें।
हम दीन दुखी निबलों  बिकलों के सेवक बन संताप हरें।
जो हैं अटके भूले भटके उनके तारे खुद तर जाएं।
वाह शक्ति हमें दो दया निधे  कर्तव्य मार्ग पर डट जाएं।।- 

- सुख मंगल सिंह अवध निवासी

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