Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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धन अंश बचाना

 

सुबह - सवेरे ज्ञानी ज्ञानी नहीं आता,

आता जाता सुनाता सुनाकर जाता!

जाते-जाते आने का निमंत्रण दे जाता,
आता आकर दुनियादारी मुझे सुनाता।

सुनने और सुनाने में बड़ा मजा आता,
एक दूसरे की करने की कह के जाता।

सफर कठिन पर पांव तक नहीं हिला,
अंगद जैसा ताला पांव में लग जाता।

राष्ट्रीय रस्ते चंपा और चमेली बिखरी,
कीचड़ से गुलाब गंध आभा निखरी।

लंबा रास्ता जल्दी नहीं कटने वाला,
विविध भाषाओं के गांव रहने वाला।

कार्य पर पूरे जीवन का हर एक सिला,
लगा रहा पूरा जीवन में फिल्म खेला।

जीवन लगता पूरा पूरा सदा झमेला,
मोनी बाबा उसमें भी पुलकित खेला।

बाबा की कथनी करनी में एक लीला,
माध्यम बन बाबाजी के ब बड़ा ढीला।

बाबा रखते अपने छप्पर एक जिला,
अति महत्वाकांक्षी त्रिदेवों का मेला।

समय समय पर उंगली आफत खिला,
खिला! जाने कब उसको इनमें मिला।

 आफत में अपना जो धैर्य नहीं खोता,
संघर्षों से उसे वह भी झट काट लेता।

समय को संघर्षों से जिसने भी झेला,
दुनिया में वही जन निखरा और खुला।

उसका ईश्वर सदा साथ दिया करता है,
मानवता की वेदी पर बुद्धि का पहरा।

कष्ट के समय बुद्धि साथ दिया करती,
दूर दराज खाड़ी - पहाड़ खड़ा रहती।

सारे समाज को लेकर साथ में रहती,
पूरे परिवार को भरपूर पास ले रखती।

एक साथ रहने में ही वह आनंद आता, 
दुनिया को देखने में खुशहाल दिखाता।

खुशहाल रहने को जन्म दिया विधाता,
संघर्षों से जीवन में आनंद खूब आता।

गुण अवगुण सारे के सारे दिख जाता,
कार्य प्रगति के पथ  निखरा दिखाता।

अपनी बारी से सबको जगना सिखाता,
दुनिया भले कहती रहती उन्हें अभागा।

ठोकर लगने से दुनिया ने यह  जाना,
शास्त्रों के लिखे पहले लिखा पहचाना।

अपनी कमाई की अंश होता बचाना,
विषम परिस्थिति उसे काम में लाना।

मौज-मस्ती में अपना निज धन गवाना,
विपरीत दिशा में आगे बढ़कर जाना।

निर्वाध गति तेज उसपे ब्रेक लगाना,
मील का पत्थर दुनिया में धन खजाना।

मौन रहकर भी  मानवता को सजाना,
ऋषि - मुनि समाज के हित खजाना।

दार्शनिक ज्ञाता दुनिया को है जाना,
चहुंमुखी विकास पर  ध्यान लगाना।

 प्राकृत मौसम को उन्होंने पहचाना,
शास्त्रों में भर दिया ज्ञान के खजाना।

ज्ञानी कभी नहीं होता है मन माना,
सुबह सवेरे ज्ञानी का आना - जाना।

आकर दुनिया को ज्ञान ध्यान दे जाना,
दुनियादारी में कैसा-२ भरा खजाना।

- सुख मंगल सिंह

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