Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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प्रत्यक्ष को प्रमाण की क्या आवश्यकता

 

प्रत्यक्ष को प्रमाण की क्या आवश्यकता है। पैसा और अन्न का प्रभाव जग जाहिर है। पचाने से अधिक खाने पर हाजमा खराब हो जाता है उसी तरह पचाने से अधिक कमाने पर ईडी सीबीआई आईटी वाले पीछे पड़ जाते हैं। इमानदारी की कमाई ही फलता फूलता है।
Sanjay Sinha उवाच
चुम्मा की प्यासी बिजली
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सुबह से उठ कर फोन पर लगा था। इसी चक्कर में आज जो लिखने का मन था, वो लिख नहीं पाया और जो लिख रहा हूं उसे लिखने का मन नहीं। मैं भी क्या करूं, पहले ही बता चुका हूं कि रोज-रोज फेसबुक पर लिखना सिर्फ मेरे मन पर नहीं निर्भर करता। ये कोई और है जो मुझसे लिखवाता है, मैं निमित मात्र बन कर टाइप करता चला जाता हूं। मेरा तो मन करता है कि सुबह जब आप सबके सामने आऊं, तो हंसी-खुशी की ऐसी यादें लेकर आऊं कि सारा दिन मन खिला रहे। आज यही सोच कर जागा था कि बिहार की उस भोली महिला की कहानी सुनाउंगा जिसके पति ने शहर से उसके पास एक चेक भेजा और महिला उसे भुनाने बैंक चली गई। बैंक में अधिकारी ने उससे चेक के पीछे दस्तखत करने को कहा, तो महिला संकोच में पड़ गई, “ई दस्तखत का होत है?”
“अरे आप अपने पति को चिट्ठी लिखती होंगी न!”
“हां।”
“तो चिट्ठी में जैइसे आखिर में नाम लिखती हैं न, बस वइसे ही लिख दीजिए।”
महिला ने चेक के पीछे लिखा, “तोहार चुम्मा के प्यासी, बिजली।” 
मैंने सोचा था कि आज लिखने की शुरूआता इसी भोलेपन से करूंगा। लेकिन सुबह ही मेरे एक जानने वाले का फोन आया कि उन्होंने अपने जिस बेटे को दिल्ली पढ़ने के लिए भेजा था, वो पढ़ाई लिखाई नहीं करता। उसने पढ़ाई के नाम पर कई साल बर्बाद किए, शराब पीने लगा है, मारपीट जैसे मामलों में फंस गया है और पिता के पैसों को उड़ा रहा है। मेरे जानने वाले ने मुझसे पूछा कि उन्हें क्या करना चाहिए? कैसे बिगड़ रहे बेटे को सही राह पर लाया जाए?
मैं बहुत देर तक सोचता रहा। मुझे याद आया कि मेरे परिचित  बिजनेस करते हैं। इधर-उधर करके खूब कमाते हैं। पैसों के बूते ही  किसी इंजीनियरिंग में बेटे का दाखिला भी करा दिया था। पर बेटा पढ़ नहीं पाया। 
ज़ाहिर है पिता ने खूब कोशिश की होगी कि बेटा सही राह पर चला आए, लेकिन बेटा उनकी सुनता ही नहीं। पिता की सारी उम्मीदें टूट गई हैं और आज सुबह घनघोर निराशा में उन्होंने मुझे फोन किया। वो रो रहे थे। वो जानना चाह रहे थे कि ऐसा क्यों हुआ।
सुबह-सुबह उनका दर्द सुन कर मेरा दिल भर आया। 
आदमी अपनी सारी ज़िंदगी जायदाद जुटाने और औलाद को पढ़ाने में खर्च कर देता है। जायदाद और औलाद दोनों में खोट हो तो आदमी ठगा सा रह जाता है। 
ज़ाहिर है मेरे परिचित का दुख बड़ा है। 
मैंने उनकी पूरी बात सुनी। फिर मैंने उनसे पूछा कि आप कभी बाहर खाना खाते हैं? 
वो मेरे सवाल को समझ नहीं पा रहे थे, पर उन्होंने कहा, “हां, खाता हूं।” 
मैंने फिर पूछा, “आप कभी-कभी कहीं कुछ गलत या गंदा खा लेते हैं तो क्या होता है?”
“पेट खऱाब हो जाता है। उल्टी-दस्त होने लगती है।”
"बिल्कुल सही कहा आपने।"
“संजय जी, पहली मत बुझाइए। मैं बहुत सीरियस हूं। आपको इसलिए फोन किया ताकि आप कुछ रास्ता बताएं।”
“मै पहेली नहीं बुझा रहा। मैं तो आपकी समस्या का कारण और समाधान बता रहा हूं।”
“ठीक है। जब कभी मैं बाहर कुछ गलत या गंदा खा लेता हूं तो मेरा पेट खराब हो जाता है। उल्टियां होती हैं, दस्त होता है। पेट में दर्द भी होता है। अब आगे बोलिए।”
“जब आपके पेट में दर्द होता है तब आप डॉक्टर के पास जाते हैं। डॉक्टर कहते हैं कि आपने कुछ ऐसा खा लिया है, जो नहीं पचा। अब आप ये दवा खाइए, कुछ दिन परहेज कीजिए। गंदा खाना मत खाएं। बस।”
“हां, बिल्कुल सही। डॉक्टर ऐसा ही कहते हैं।”
“आपका बेटा भी आपके गलत पैसों के बूते यहां पढ़ने आया। वो पैसा उसे नहीं फला और वो अपना तो जो बिगाड़ना था, बिगाड़ ही बैठा, आपके दुख का कारण भी बन गया।”
“ये बात मेरी समझ में नहीं आई।”
“जिस तरह गंदगी में बना भोजन खाने में स्वादिष्ट होता है लेकिन शरीर को नुकसान पहुंचाता है, वैसे ही गलत तरीके से कमाया पैसा आपको क्षणिक सुख ज़रूर देता है, लेकिन वो इसी तरह बाहर भी निकलता है। आपने पैसे कमाने में ईमान का ध्यान नहीं रखा, वो संतान के संताप के रूप में सामने आ रहा है।” 
मेरे परिचित कुछ देर चुप रहे। फिर उन्होंने कहा कि संजयजी, ये तो पहली बार सुन रहा हूं कि पैसा भी अलग-अलग होता है।
“जी हां, एकदम अलग-अलग होता है। जिस तरह कमाया जाता है, उसी तरह जाता है। गंदा खाना पेट खराब करता है, गंदी कमाई भविष्य खराब कर देती है।”
मेरे इस कदर रूखे होने पर उन्हें बुरा तो लगा होगा, लेकिन मन ही मन वो समझ रहे थे कि मैं क्या कह रहा हूं। 
उन्होंने पूछा, “कोई उपाय?”
“उपाय तो एक ही है। अभी उसे ले जाइए। अपने साथ रखिए। उसे जीवन की सार्थकता समझाइए। उसे बताइए कि सही और गलत में क्या अंतर होता है। उसके रोल मॉडल बनिए। समय बर्बाद ज़रूर होगा लेकिन कुछ समय बाद स्थितियां बदल जाएंगी। फिर कसम खा लीजिए कि गलत तरीके से पैसे नहीं कमाना है। सिर्फ ईमान का पैसा ही संतान पर लगता है। मेरी बातों पर यकीन न हो तो चाहे जितने उदाहरण लेने हों, ले लीजिएगा। जहां संदेह हो मुझसे पूछ लीजिएगा। चोरी का धन मोरी (नाली) में जाता है, ये सिर्फ गांव की कहावत नहीं,  सच्चाई भी है। आपका धन भी चोरी का था, बेटे के रूप में मोरी में जा रहा है।”
इसके बाद उन्होंने फोन रख दिया। 
मुझे यकीन है कि मेरे परिचित मेरी बात समझ गए होंगे। समझ गए होंगे, तो वक्त जरूर बर्बाद हुआ, बेटा बच जाएगा। 
खैर, अभी तो मेरी एक चिंता बिजली को लेकर भी है। 
वही बिजली जिसके पति ने उसके पास चेक भेजा और बिजली ने चेक के पीछे लिखा, “तोहार चुम्मा के प्यासी, बिजली।”
मुझे विश्वास है कि बिजली का पति गांव से शहर आकर मेहनत और ईमानदारी से पैसे कमा रहा होगा। जब तक वो ईमानदारी के पैसे कमाएगा, बिजली उसकी चुम्मा की प्यासी रहेगी। जिस दिन गलत तरीके से पैसे कमाने और भेजने लगेगा, बिजली गुल हो जाएगी। 
नोट- 
डॉक्टरनी ने मेरी यादों को झकझोरा है। लिख कर भेजा है कि संजय सिन्हा बवाल छोड़िए, कमाल दुहराइए। उसी कड़ी में चुम्मा की प्यासी बिजली की कहानी रिपीट है। 

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