Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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महखाना

 

ओ शराबी, ओ शराबी....
जाम पी, मुझको तू अब तो छोड़ दे.....
जो मज़ा तुझ में भला, वो जाम में रखा कहाँ.....
तू बता मुझ में भला, ऐसा भी रखा है, क्या.....

 

ओ शराबी, ओ शराबी जाम पी.....

 

तेरे हुस्न की तारीफ़ कैसे करूँ, तू ही बता.....
तेरे दम से ज़िंदा हूँ, वर्ना ना होता मैं यहाँ.....
आज जो कुछ भी हूँ मैं, बस तेरी मुझ पर है दया.....

 

ओ शराबी, ओ शराबी जाम पी.....

 

ओ हुस्न की मलिके, मुझसे भी अब तू सुन ज़रा.....
तेरे खातिर जाम क्या मैं छोड़ दूँगा, दो जहाँ.....
एक बार अपना तू कह दे, फैंक दूं दिल को यहाँ.....

 

ओ शराबी, ओ शराबी जाम पी.....

 

तुझ में वो हर बात है, मैं कुछ भी कह सकता नहीं.....
सोचता हूँ तेरी तारीफ़, अब शुरू कहाँ से करूँ.....
जहाँ से सोचूँ कम लगे, बस इस खातिर मैं चुप रहूं.....
डरता हूँ इस बात से, कोई ख़ता मुझ से ना हो.....

 

ओ शराबी, ओ शराबी जाम पी.....

 

तेरे जैसा हुस्न हमने, देखा ना सुना कहीं.....
जब से देखा तुझको मैंने, देखा ना तब से कहीं.....
तू ही मेरी ज़िंदगी है, तू ही मेरी बंदगी.....
अल्लाह मुझको मौत दे दे, तुझ को दे दे ज़िंदगी.....
इससे आगे क्या कहूँ "बंसल" की तू है दिल्लगी.....

 

ओ शराबी, ओ शराबी जाम पी, मुझको तू अब तो छोड़ दे.....
ओ शराबी, ओ शराबी जाम पी.....

 

 

लेखक:- श्री निरंजन कुमार बंसल

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