शशांक मिश्र भारती
गुरु से बड़ा न कोई है इस संसार में और ।
गुरु का जो अपमान करे मिले न उसको ठौर।।
पशुता से मानवता में गुरु ही है बदलता ।
नित बल जो न बढ़ पाये जीवन भर है खलता।।
शिक्षा संस्कार ही बालकों को आगे हैं बढ़ाते ।
जीवन सुरभित बगिया सा प्रसिद्ध जग में पाते।।
गुरु कृपा से होत है इस जग में नैया पार ।
सानिध्य अमोलक जानिये सबका खेवनहार।।
इस जगत में अनगिनत गुरु ते श्रेष्ठ न कोय।
सृष्टा भी सृजना करे पर ज्ञान कछु न होय।।
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