Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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अवरोधः-

 

—–
मैं
निरन्तर परिस्थितियों से
लड़कर भी खड़ा हंू,
अपनी-मंजिल की तलाश में
सोचता हंू तोड़ दंू
अपने पथ के सभी अवरोधों को।
किन्तु-
समक्ष आ जाता है
शब्दों का अभाव
बनजाता है जो मेरे
मन की व्यथा,
लेकिन-
फिर भी प्रयत्नशील हंू
मैं अपने पथ पर
और-
प्रयत्न करता रहंूगा
सफलता प्राप्त होने तक,
वह-
मेरा एक नव सुखद प्रभात होगा
जब छंट जायेगी
मेरे मार्ग की
वे सभी अवरोधी चट्टानें
जिन्होंने-
रोक रखा है
मेरे मानसिक उत्कर्ष को।

 

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