Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

शरद पूर्णिमा की गरिमा

 

शरद पूर्णिमा की गरिमा

                    शशांक मिश्र भारती

सोलह कलाओं से युक्त चन्द्रमा

जब आकाश में आता

धरती अम्बर बिखरती चांदनी

पर्व शरदपूर्णिमा कहाता।

चन्द्र की चंचलता चारों ओर

रात्रि मानो दूध से नहलाता

जल थल नभ जहां भी दृष्टि

चांदी सा बिस्तर पाता।

मां लक्ष्मी का प्रकटोत्सव है

कोई जन गाकर बताता

राधा कृष्ण ने रास रचाया

यह निशा वही समझाता।

कोजागरी नाम दिया किसी ने

तुलसी को है पूजा जाता

रात को खीर आंगन रख

लाभ अमृतवर्षा का उठाता।

कहते मां लक्ष्मी का दिन है

जब धरती की ओर आना

सभी जनों को स्नेह लुटाना

रात खीर का भोग लगाना।

यह महर्षि वाल्मीकि का दिन 

धरा को पावन कर डाला

रचा सृष्टि का प्रथम छन्द

आरम्भ कवियों की माला।

राम चरित हृदय में रखकर

रामायण महाकाव्य बनाया

जन-जन का कण्ठाहार चरित्र

जन जन तक है पहुंचाया।

शरदपूर्णिमा की गरिमा सदा

यूं ही जाती रही है गायी

राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त

कालिदास ने है बतलायी।। 


Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ