Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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शौक़ से नाकाम होकर जी रहे हैँ

 

"शौक़ से नाकाम होकर जी रहे हैँ
फिर सरे अँजाम होकर जी रहे है

 

नाम था तेरा मगर तू जी न पाया
और हम बदनाम होकर जी रहे हैँ

 

शाह भी आवाम की मर्ज़ी के आगे
देखिये आवाम होकर जी रहे है

 

शहरे गुलशन मेँ फ़क़त वो ही बचे है
जो तेरे ग़ुलफ़ाम होकर जी रहे है

 

हमसफर होते मज़ा कुछ और होता
सिर्फ़ इक इल्जाम होकर जी रहे हैँ

 

जी रहे हैँ छातियोँ पे ज़ख़्म मेरे
इश्क़ के ईनाम होकर जी रहे हैँ

 

निस्बतेँ जिस से हमेँ हैँ ख़ास 'शायर'
उस नज़र मेँ आम हो कर जी रहे हैँ

 

 

**** शायर¤देहलवी ****"

 

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