Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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ज़ीस्त की रौनक़ गई आँखोँ की बीनाई गयी

 

ज़ीस्त की रौनक़ गई आँखोँ की बीनाई गयी
आज तक हमसे न तेरी याद बिसराई गई

 

क्या तुझे मालूम की कैसे कटे शामो सहर
किन बहानोँ से तबीअत राह पर लाई गयी

 

ये मेरी दीवानगी क्या आज पहली बार है
किस लिये फिर आज ये जँजीर पहनाई गई

 

दौलतो शुहरत गयी हर रब्त ओ रिश्ता गया
रफ़्ता रफ़्ता सब गया लेकिन न तन्हाई गयी

 

रब्त इक रुस्वाइयोँ से उम्र भर कायम रहा
हम जहाँ पहुचे हमारे साथ रुस्वाई गयी

 

उस घडी तो आसमां का भी कलेजा फट पडा
जब शराफ़त भी हमारे साथ दफ़नाई गयी

 

छान कर देखी गयी तेरी जफ़ा की ख़ाक जब
इसमेँ थोडी सी अदावत की कमी पायी गयी

 

इक तुम्हारे दम से ही शायर ग़ज़ल कहता रहा
तुम गये तो साथ ही लफ़्जोँ की गहराई गयी

 

 

 

**** शायर¤देहलवी ****

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