Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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जिस वक़्त रहनुमा तेरे ग़मख़ार हो गये

 

जिस वक़्त रहनुमा तेरे ग़मख़ार हो गये
अपनी ज़ुदाई के तभी आसार हो गये

 

जिसने तुम्हारी याद मेँ रोकर गुज़ार ली
वो सब ख़ुदा की दीद के हक़दार हो गये

 

बिकते हैँ तेरे शहर मेँ गोया सियाह रू
चेहरे न हों गये कोई अख़बार हो गये

 

बादे सबा तेरा बदन क्या चूम कर चली
जिस जिस को छू लिया वही अत्तार हो गये

 

यूँ जंग के मैदान से ज़िन्दा न आ सके
जो साथ थे मेरे वही गद्दार हो गये

 

जब ज़िन्दगी से पाँव मेँ जँज़ीर पड गयी
हम सहन मेँ आकर तेरे दीवार हो गये

 

दो चार छह की बात क्या करनी कि शहर मेँ
जिस ओर देखिये तेरे बीमार हो गये

 

उसको वफ़ा आती नहीँ उसका कुसूर क्या
कुछ लोग ज़िन्दगी से क्यूँ बेज़ार हो गये

 

वादे तमाम आपके थे आपकी तरह
इकरार हो गये कभी इन्कार हो गये

 

कुछ यूँ मुहौब्बते ग़ज़ल शायर के सर चढ़ी
जो हर्फ़ मेरे हो गये अशआर हो गये

 

 

**** शायर¤देहलवी ****

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