Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

रिश्तों को साधें

 

परिवारों के समूह से समाज बनता है। परिवार चाहे एकल हो या संयुक्त परिवार हो लेकिन परिवार के सदस्यों के पारीवारिक सम्बंधों में तालमेल रहना चाहिए अन्यथा परिवार नरग बन जाता है। परिवार के सदस्यों के अलावा रिश्तेदारों, पड़ौसियों और आॅफिस में साथ काम करने वालों से भी अच्छे सम्बन्ध बनाये रखना चाहिए जिससे समाज एक स्वर्ग बन जाय। रिश्तों की नींव यदि टिक सकती है तो सिर्फ आपसी स्नेह, सम्मान, त्याग एवं सहनशीलता पर न कि धन, सामाजिक प्रतिष्ठा या उच्च पद पर।
जिन परिवारों में पति-पत्नि दोनों नौकरी पेशा है उन्हें आपसी सामंजस्य के अलावा सौहार्द्धपूर्ण रवैया अपनाना चाहिए ताकि मनोरोगों से बच सके। सौहार्द्धपूर्ण वातावरण का अनुकूल प्रभाव बच्चों पर भी पड़ता है और आपसी रिश्तों पर भी। परिवार के सदस्यों घरेलू कार्यो में यथा सम्भव मदद करें। पति या पत्नि के अच्छे कार्यो के लिए प्रोत्साहित कर और विषम परिस्थिति में सुझाव एवं सहयोग दें। घरवालों के सामने पत्नि पर कभी ताना-कशी न करें और न डांट-फटकारें। पति को बच्चों एवं पत्नि के लिए समय दें और जब सम्भव हो घूमने फिरने ले जाय। जो पति अपनी पत्नि की उपेक्षा करते है और निठ्ठले बैठकर हुकम अथवा हिदायतें ही देते रहते है पत्नि अन्दर ही अन्दर टूट जाती है। इस टूटन का प्रभाव उनके रिश्तों पर भी पड़ता है। यदि पत्नि नौकरीपेशा नहीं तो भी उसके मान सम्मान स्नेह एवं सुरक्षा का दायित्व पति का है। पत्नि रूढीवादी मानसिकता से उबरे और समय की मांग को पहिचाने।
संस्कृति के संक्रमणकाल में जीने वाले बच्चों के अभिभावकों को भला इतना फूर्सत कहां है जो बच्चों को सामाजिक मूल्यों से रूबरू करा सके। भौतिकवादी संस्कृति के पोषक अभिभावकों की अपेक्षाएं तो यह है कि उनका बच्चा डाॅक्टर, इंजिनियर या आई.ए.एस. बनें। कुछ एक पति-पत्नि तो अपने बच्चों को डांटते फटकारते रहते है। ‘‘जा मेरा सर मत खा‘‘, ‘‘ एक झापट मारूंगा सीधा हो जायेगा।‘‘ इत्यादि। सारे दिन अपने बच्चों नसीयत देते रहते है या पढ़ने के लिए कहते रहते है इसलिए बच्चे सुख-सुविधाएं जुटाने में व्यस्त रहते हैं। ऐसे बच्चों को संस्कारित कौन करेगा? पति-पत्नि का काम है कि अपने बच्चों में अच्छे संस्कार डाले। उन्हें सदैव बड़ो का आदर करने की सलाह दें। बच्चों की समस्याओं को अभिभावक समझे और उसका निदान करें। पुत्रों को अनावश्यक प्रेम एवं पुत्री को अलगाव से बचावे। बच्चों के अच्छे कार्यो का सराहे और गलत कामों से दूर रहने के लिए कहें। बच्चों को भी अपने माता-पिता की आज्ञा का पालन करना चाहिए।
हमारे देश में संयुक्त परिवार प्रणाली भारतीय संस्कृति और सभ्यता का अहम हिस्सा रही है। शहरीकरण और रोजगार पाने की लालसा के कारण संयुक्त परिवार टूटने लगे है लेकिन आज भी कुछ लोग अपने बुजुर्ग माता-पिता को अपने साथ रखते है। ऐसी स्थिति में आवश्यक है कि न केवल बेटे-बहु और बच्चे ही बुजुर्गो का ध्यान रखे बल्कि परिवार वृद्ध माता-पिता भी अपने परिवार के सदस्यों के बीच सामंजस्य बनाये रखें। युवा पीढ़ी वृद्धों को अपेक्षित मान-सम्मान दें और उन्हें बोझ न समझे। अपने माता-पिता जो वृद्ध है उनके जीवन को असंतुलित न होने दें। उनकी दवा, भोजन, पुस्तकें और विश्राम आदि का पूर्णतया ध्यान रखें। चूंकि उनकी इंद्रियों की कार्यक्षमता में शिथिलता आ जाती है इसलिए उनकी आवश्यकता का पूरा-पूरा ध्यान रखें। वृद्धजनों के अनुभव का पूरा-पूरा लाभ उठाये। वृद्ध माता-पिता की भविष्य के लिए बचाई गई राशि पर नजर न रखें। उन्हें कोई परिश्रम वाला काम करने के लिए न कहें। वृद्धजनों को भी घर के किसी काम में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए। सेवानिवृत माता-पिता को अपने पोते-पोतियों को पढ़ाई में सहयोग देना चाहिए। वृद्धजनों को अपने बेटे, बहु और बच्चों के द्वारा किये हुए कार्यो की सराहना करनी चाहिए। अगर माता-पिता बाहर रहते हो तो उन्हें चिट्टी या फोन करते रहना चाहिए जिससे सद्भावना बनी रहे। संयुक्त परिवार में हिलमिल कर रहने से आत्मिक शान्ति मिलती है।
प्रत्येक परिवार के मुखिया को अपने परिवार के सदस्यों से अच्छे पारिवारिक सम्बंध रखना ही काफी नहीं है, बल्कि दूसरे सामाजिक सम्बंधों को बनाने का प्रयास करना चाहिए। दुनियां में मानव एकांकी जीवन नहीं बिता सकता इसलिए वह अपने पड़ोसियों और रिश्तेदारों से अच्छे सम्बन्ध बनाकर रखें। हो सके तो किसी सामाजिक संस्था से जुड़े। हमेशा सकारात्मक विचारों वाला और रिश्तेदारों से मेल मिलाप वाला व्यक्ति ही समाज में सुखी रहेगा। समाज के सभी रिश्तों को साधने के लिए सर्वोत्तम शिक्षा है कि आप ‘‘कहिए वचन विचार के सबसे हिल मिल चलिए नदी नांव संजोग।‘‘

 

 

 

सत्यनारायण पंवार

 

 

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