Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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अकेलापन उनका

 

(सत्यनारायण पंवार)

समाज की अजीबों गरीब परम्परा है कि आदमी विधुर हो जाये या अपनी स्त्री को तलाक दे दे तो वह कंवारी लड़की से घोड़े पर बैठकर दूल्हा बनकर शादी कर सकता है, लेकिन अधिकतर विधवा लड़की या तलाक शुदा लड़की फिर से दुल्हन बनकर वेदी पर बैठकर शादी नहीं कर सकती। इस परम्परा से ऐसा लगता है कि आदमी को औरत से बेहतर माना जाता है। कुछ जातियों में विधुर आदमी दूसरी शादी कर सकता है और विधवा औरत दूसरी शादी भी नहीं कर सकती और उसे जीवन भर अकेले ही बिना सुविधाओं के जीवन काटना पड़ता है। समाज की ऐसी परम्पराएं और समाज के बढ़ते विवाह विच्छेदों ने स्त्रियों की आधुनिक स्थिति का स्तर बहुत गिरा दिया है। हमारी सरकार के कमजोर कानूनों ने भी स्त्रियों की स्थिति को दयनीय बना दिया है। हालांकि स्त्रियों की बढ़ती शिक्षा ने उन्हंें स्वावलम्बी बना दिया है लेकिन उनकी वैवाहिक स्थिति में सुधार की बजाय हृास हुआ है क्योंकि स्त्रियों को सम्पूर्ण सुरक्षा देने में असमर्थ है।
समाज में किन्हीं कारणों से एक स्त्री परित्यकता बनती है तो सास और ससुर के घर को छोड़कर अपने माता-पिता के साथ रहने लगती है। वह स्वावलम्बी है या बेरोजगार दोनों ही अवस्थाओं में अपने घर के सदस्यों के लिये भार है क्योंकि घर के सभी सदस्यों के कंधों पर उसके पुनः विवाह की जिम्मेवारी आ जाती है। समाज के लोग न जाने क्यों उन्हें हेय की दृष्टि से देखते है और वेहसी भेड़िये उनका नाजायज फायदा उठाने की कोशिश करते है। सभी रिश्तेदार और समाज के लोग इन स्त्रियों के लिए होठों पर सहानुभूति तो दिखाते हैं लेकिन कोई भी समाज का कंवारा, विधुर या तलाकशुदा आदमी उसे अपनाने को तैयार नहीं होता है क्योंकि उसे कंवारी लड़की से शादी करने की चाहत होती है।
समाज में विधवा और परित्यकता एक गेंद के समान है जिसके साथ समाज के सभी लोग खेलना चाहते हैं लेकिन अपनाना अधिकतर कोई भी नहीं चाहता। समाज के ऐसे वातावरण के जिम्मेदार हम हैं। हम लोगों में समाज की अजीबो गरीब परम्परा को तोड़ेने कि हिम्मत नहीं है। कुछ समाज की परम्परा को तोड़ते है तो वे समाज के गुनाहगार माने जाते हैं और समाज के लोग उनसे सामाजिक सम्बन्ध तोड़ लेते है। समाज में स्त्रियां विधवा या तलाकशुदा अपनी गलतियों से नहीं बनती फिर उन्हें उपरोक्त बताई सजा क्यों भुगतनी पड़ती है क्योंकि पुरूष प्रधान समाज है जहां औरतों की कोई बात न समझी जाती है न कोई बात सुनी जाती है।
कभी-कभी तो समाज की विधवा या तलाकशुदा स्त्रियों को अनेक प्रकार की यातनाओं को सहन करना पड़ता है। अखबार में प्रतिदिन ऐसी घटनाएं नजर आती है क्योंकि वे शारीरिक कमजोर होती है और समाज में भी उन्हें नीची निगाहें से देखा जाता है। अंधविश्वासी लोग इन औरतों को शादी और अन्य उत्सवों में भाग लेने से वंचित करते हैं क्योंकि उनका मनहूस साया उत्सव में भाग लेने वालों पर न पड़े।
अगर परित्यकता पढ़ी लिखी है और उसे नौकरी मिल जाये तो वह स्वतंत्र रूप से स्वावलम्बी बनकर जी सकती है अन्यथा कानून के द्वारा अपने पति से भरणपोषण का मुआवजा मिलना बहुत मुश्किल है। न तो वह ससुराल में रह सकती है और न ही पीहर में रहकर माता-पिता एंव भाईयों पर भार बनकर रह सकती है। समाज के सभी लोग उसे तिरस्कार की दृष्टि से देखते है भले ही वह निर्दोष हो। परित्यकता से कंवारे लड़के तो क्या विधुर और तलाकशुदा लड़के भी शादी नहीं करना चाहते क्योंकि उनसे आसानी से कंवारी लड़कियां विवाह करने के लिये मिल जाती है। अगर विधुर और तलाकशुदा लड़कों से कंुवारी लड़कियां शादी न करें तो परित्यकता की शादी होने में सुविधा हो सकती है लेकिन लड़की वालों के लिये दहेज की समस्या से छुटकारा पाने के लिये उन्हें अपनी लड़कियों की शादी विधुर और तलाकशुदा लड़कों से करने के लिए मजबूर होना पड़ता है। वास्तव में समाज के सभी लोगों को परित्यकता की स्थिति को सुधारने का प्रयत्न करना चाहिए।
समाज की कोई भी स्त्री परित्यकता बनना नहीं चाहती लेकिन उसे किसी कारणवश मजबूर होकर परित्यकता बनना पड़ता हैं। अधिकतर परित्यकताएं शादी करना चाहती है लेकिन पुरूष चाहे विधुर हो या पत्नी से तलाक लिया हुआ हो परित्यकताओं से शादी नहीं करना चाहते क्योंकि उन्हंे आसानी से कुंवारी लड़कियां शादी करने के लिये तैयार हो जाती है। अतः परित्यकताओं को पुनर्विवाह की सम्भावनाएं बहुत कम होती है। पुनर्विवाह न होने पर परित्यकताओं को अकेले जीवन काटने के लिये मजबूर होना पड़ता है। अगर वे पढ़ी लिखी है और उन्हें कोई रोजगार मिल जाये तो वे स्वावलम्बी बनकर एकाकी जीवन गुजार लेती है लेकिन कम पढ़ी लिखी होने पर रोजगार न मिले तो माता-पिता भाई या बहिन पर भार बनकर जीना जरा तकलीफदेह होता है। इतना ही नहीं समाज के कुछ पुरूष इन परित्यकताओं का नाजायज फायदा उठाने की कोशिश भी करते है इन परित्यकताओं का जीवन दूभर हो जाता है। सरकार के कानून उन्हें कुछ भी सुविधाएं देने में असमर्थ है और समाज के ठेकेदार (अधिकतर पुरूष) इन परम्पराओं को समाप्त करने में असमर्थ है। इसलिये परित्यकताओं की समाज में दयनीय स्थिति है और उसे सुधारना हम सब लोगों का धर्म हे। समाज के सभी विधुर और तलाकशुदा पुरूषों से अनुरोध है कि वे केवल समाज की परित्यकताओं से ही पुनः विवाह करें। इतना ही नहीं कुंवारे नौजवान भी इन विधवाओं और परित्यकताओं से विवाह करके समाज में ज्वलंत उदाहरण पेश करें।
अकेली औरत चाहे विधवा या तलाकशुदा हो, उसके व्यवहार, आचरण और चरित्र पर समाज के लोगों द्वारा अंगुली उठाई जाती है। उसके वजूद को संदेह के घेरे में खड़ा कर दिया जाता है। अकेली महिला चाहे जितनी शिक्षित, संस्कारी और ईमानदार क्यों न हो उसकी हर गतिविधि पर प्रश्नचिन्ह लगाया जाता है। अकेली औरत इन वर्जनाओं को तोड़कर संघर्ष कर अपना वजूद कायम करना चाहती है तो इसे विद्रोह का नाम देकर उसका जीना मुश्किल कर दिया जाता है। ऐसी परिस्थितियों में अकेली औरत को मजबूरन समाज से कटकर एक अलग दुनियां बसानी पड़ती है। वास्तव में अकेली महिला को समाज द्वारा भावनात्मक सहारा मिलना चाहिए ताकि वह स्वयं को सुरक्षित व सहज महसूस कर सके और समाज में अपनी जगह बना सके।

(सत्यनारायण पंवार)
68, गोल्फ कोर्स स्कीम
जोधपुर 342011

 

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