Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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बूँद का महत्व– सत्यम

 

उष्णता से तृप्तोपरांत त्रस्त
उत्सर्जित नमकीन बूँदोँ से पस्त
आस मेँ चंद सुकुन की
विश्वास मेँ बादलोँ से टपकते रस बूँद की
हलक सूखते थे,
पक्षियों के प्राण टूटते थे
छाँह में भी बेचैन थे हम
फिर भी आमों में बौर फूटते थे
काले बादलों को देख हर्षोल्लासित हुआ मन
बरसते बूँदोँ को आँखोँ के पलकोँ पे,
चेहरे पे,
अधरोँ पे,
महसूसता था सूखा हलक और
बरसों बारिश में नहाने को अतृप्त तन
बङी – बङी बूँदेँ, चेहरे पे बिछ जाती
जैसे होँ मृत्यु-शय्या पे पङे,
हेतू एक पल और जीने को प्राण
जो पल मेँ ही दे गया,
जीवन जीने को एक और विश्राम॥

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