Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

“ दबे पांव आये,ऋतुपति

 
ठिठुरी पंखुड़ियां विहसने लगी
कोमल कलियां हंसने लगी
श्याम भ्रमर कर गया क्या कानाफूसी
छिटपुट बरदिया बरसने लगी।।

पलास गलियारों से सरपट
पछुआ सरस झुरकने लगी।
चुप-चुप कलियां मुस्कायी
पगडंडी सहज महकने लगी।।

झांके अमराई घुंघट हटा
नन्हे भ्रमर हरषने लगे।
शरद थपेड़ों से जो हारे ठुठ
नवल पुनगी पा चहकने लगे।।

गुथे सघन आकुल झुरमुट
दबे पांव आये चुप-चुप।
ठुठ टहनियों में भर हरियाली
बसंत फुलवारी घुमे छुप-छुप।।

#क्षात्र_लेखनी© @SantoshKshatra


Attachments area








 














Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ