Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

पर्यावरण का संरक्षण

 
पर्यावरण का संरक्षण करना पृथ्वीवासियों के हित में होगा
पर्यावरण को सुधारने हेतु यह दिवस महत्वपूर्ण है।लोगों में पर्यावरण जागरूकता को जगाने के लिए 5 जून को मनाया जाने वाला विश्व पर्यावरण दिवस दुनिया का सबसे बड़ा वार्षिक आयोजन है। इसका मुख्य उद्देश्य हमारी प्रकृति की रक्षा के लिए जागरूकता बढ़ाना और दिन-प्रतिदिन बढ़ रहे विभिन्न पर्यावरणीय मुद्दों को देखना है। पृथ्वी दिवस को मनाया जाने के पीछे मूल कारण था पर्यावरण क्षरण और पर्यावरण में परिवर्तन का सुधारना होना|वर्तमान में बढ़ते प्रदूषण,वनों की कटाई और जलवायु परिवर्तन ने पृथ्वी की स्थिति डावाडोल कर दी|पृथ्वी का तापमान बढ़ता ही जाने लगा|लोग एसी,फ्रिज का अत्याधिक उपयोग करने लगे|तापमान बढ़ने से लोग अपने वाहनों एवं स्वयं को छांव की तलाश में जुटने लगे है |अगर हम अभी से पर्यावरण  को बचाने के लिए कदम नहीं उठाएंगे तो भविष्य में पृथ्वी की क्या स्थिति होगी वो भयानक मंजर अभी से नजर आने लगा है |पृथ्वी को बचाने हेतु जैसे पेड़ लगाना,पानी बचाना और प्लास्टिक का उपयोग कम करना,बिजली की बचत करना,सोलर एनर्जी जैसी हरित ऊर्जा का उपयोग करना ,कचरे को रिसाइकिल ही श्रेष्ठ उपाय है|पेड़ो की अंधाधुंध कटाई से पर्यावरण असंतुलित हुआ है |वही ग्रीनहाउस गैस कम करने के तरीकों का कड़ाई से पालन किया जाना आवश्यक है |वर्तमान में खेती में रासायनिक उर्वरकों,खरपतवार नाशक एवं कीटनाशकों का ज्यादा उपयोग के कारण हानिकारक तत्वों से फसल भी प्रभावित हो रही है।जिसका प्रभाव पर्यावरण, मृदा उर्वरता तथा मानव एवं अन्य जीवों के स्वास्थ पर बुरा प्रभाव पड़ता दिखलाई दे रहा है।जैविक खेती पद्धति एवं उत्पादों को बढाने हेतु जैविक खेती प्रारम्भ करना चाहिए|युद्ध से भी पर्यावरण को क्षति पहुँचती है |युद्ध में उपयोग किए जाने वाले विध्वंस हथियारों से प्रदूषण फैलता है जिससे पर्यावरण को क्षति पहुँचती है |स्वच्छ पर्यावरण एवं विश्व शांति के लिए परमाणु व जैविक हथियारों पर अंकुश की पहल की जाना चाहिए|पर्यावरण में ध्वनि प्रदूषण का बढ़ना भी चिंताजनक है |जो की स्वास्थ्य पर खतरे को आगाह करता है |ध्वनि प्रदूषण को देखे तो 60 से अधिक डेसिबल भी ध्वनि को शोर या प्रदूषण मानते है |प्रेशर हार्न पर अंकुश होना चाहिए |डीजे ,माइक की ध्वनि में भी ज्यादा शोर नहीं होना चाहिए |ध्वनि प्रदूषण को कम करने के लिए स्कूल कॉलेज,अस्पताल आदि की बाउंड्री पर फेंसिंग मेहंदी की झाड़ी,अन्य पौधो की होना चाहिए | ये ध्वनि प्रदूषण को अवशोषित कर सकें। साथ ही सड़कों के किनारों के दोनों और हरे वृक्ष लगाने से भी ध्वनि की तीव्रता को कम किया जा सकता है |ध्वनि प्रदूषण को कम करने का संकल्प लेवे ताकि बढ़ती ध्वनि प्रदूषण पर अंकुश लगाने से शरीर स्वस्थ बना रहकर हम सभी विश्व स्वास्थ्य संगठन के लक्ष्य को पूरा करने में सहयोग कर सके |
माननीय मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव जी के कुशल नेतृत्व मे मध्य प्रदेश में 'लाडली लक्ष्मी उत्सव' के निमित्त 'एक पेड़ लाडली लक्ष्मी के नाम' अभियान के माध्यम से व्यापक स्तर पर पौधरोपण किया गया था।पर्यावरण की दृष्टि  से पुनीत कार्य की पहल निसंदेह प्रशंसनीय है |यह अभियान बेटियों के उज्जवल भविष्य और पर्यावरण संरक्षण के दोहरे उद्देश्य को साकार करने की अनूठी पहल है। इस अभियान के द्वारा मध्य प्रदेश में न केवल हरियाली बढ़ेगी, बल्कि बालिकाओं के प्रति सम्मान की भावना भी प्रबल होगी।विगत वर्ष मध्यप्रदेश में "एक पेड़ मां के नाम" अभियान वृक्षारोपण के हित में अभियान चलाया गया था।वर्तमान में पृथ्वी का तापमान बढ़ता जा रहा है |बढ़ते तापमान को कम करने में वृक्ष की भूमिका अहम् रहेगी | पृथ्वी सुरक्षित रहेगी|पर्यावरण को स्वच्छ बनाने में छोटी छोटी बातों पर अमल कर सहयोग कर सकते है |पर्यावरण के पक्ष में तनिक दूसरी और गौर करें तो निकोटिन भी हमारे पर्यावरण को जहरीला बनाता है।महज 8 या 10 मिनट तक के परोक्ष धूम्रपान से व्यक्ति के रक्तचाप में वृद्धि, ह्रदय की धड़कनों में वृद्धि, खून की नलिकाओं में सिकुड़न जैसे घातक प्रभाव पड़ते है।धूम्रपान का धुँआ पर्यावरण औऱ इंसान की सेहत बिगाड़ रहा है। यदि व्यक्ति अपनी,अपनों की एवं सारे संसार की खुशहाली जिंदगी चाहता है तो उसे आज से ही तंबाकू का सेवन बंद कर देना चाहिए | दृढ़ इच्छाशक्ति के बिना इसे छोड़ा नहीं जा सकता है|अपनी व अपने परिवार की खुशहाली के लिए तंबाकू ,धूम्रपान से दूर रहने का प्रयत्न करना चाहिए |प्रदूषण और महामारियों जैसी आधुनिक चुनौतियों का समाधान पौधरोपण में निहित है।वृक्षारोपण के दौरान  पोधो  रोपण करें क्योंकि औषधीय  पौधे का आर्युवेद में महत्व है।जिनसे महामारियों पर अंकुश लगाया जा सकता है। वृक्षों  को प्राचीन समय से लोग पूजते आ रहे है ,इसके पीछे भीषण गर्मी मे ठंडी सुखद छाँव प्राप्त होना, शुद्द हवा  ,उदर- पोषण, सांसारिक जीवन के अंतिम पड़ाव में दाहसंस्कार में उपयोगी बनना  ,पृथ्वी के तापमान को कम व् वर्षा के बादलों को अपनी और आकर्षित कर वर्षा कराना ( उदाहरण -चेरापूंजी ) ,दैनिक जीवन की आवश्यकता की आर्थिक रूप से पूर्ति करना  एवं ईश्वर के रूप मनोकामनाओं का आशीर्वाद देना ही पेड का कर्तव्य है |फिर भी लालची इन्सान पेड को काटने हेतु अपने स्वार्थ को सिद्द करने मे लगा रहता है|राजस्थान के डूंगरपुर जिले के हर गांव में अब सबसे पुराने पेड़ को जननी वृक्ष का दर्जा  दिए जाने की वृक्ष के सम्मान में प्रशंसनीय पहल की गई  है ।वृक्षो  की सुरक्षा और इनकी देखभाल इस योजना में बरगद ,खेजड़ी पीपल ,आम ,महुआ ,नीम ,सेमल, गुलर ,मोलश्री ,रायणी ,अर्जुन ,इमली ,कल्पवृक्ष  आदि को ( मदर ट्री ) जननी के रूप में चयन किया गया है ।ऐसी योजना हर प्रदेश में लागू होना चाहिए मिट्टी के कटाव रोकने हेतु नदी के तट पर फलदार  वृक्ष ज्यादा मात्रा में लगाया जाना चाहिए प्राचीन वृक्षों को जो अंदर से खोखले या गिरने की कगार पर हो उसका उपचार भी किया जाना चाहिए । नए पौधरोपण  इस तरह करें  ताकि बड़े होने पर उसे काटा ना जा सके |  पौधारोपण करते समय उसकी सुरक्षा का इंतजाम पहले से करे।  यदि हो सके तो अपनों की स्मृति में या उसे गोद लेकर पौधारोपण  का संकल्प लेवे तो  ये पुनीत कार्य सफल सिद्ध होगा |वृक्षों से ही जंगल, पहाड़ो का सोंदर्य है |वृक्ष ही इन्सान के मददगार एवं अंतिम पड़ाव तक का साथी होता है व पशु,पक्षियों को आसरा होता है |  साथ ही कई पौधे हमें  वृक्ष के रूप में आक्सीजन देकर पर्यावरण को शुद्ध करते है।नासा के वैज्ञानिकों ने पिछले वर्षो  के वैश्विक तापमान का मासिक विश्लेषण भी किया। मौसमों में ज्यादा बदलाव यानि अधिक गर्मी  के करीब पहुँचना चिंतनीय सवाल खड़े करता है। क्या मौसम के निर्धारित माह अपने माह को आगे बढ़ा रहे है ?पर्यावरण विशेषज्ञों का मानना है कि  पर्यावरण मे बदलाव का बुरा असर  लकड़ी पर भी हो रहा  है |उसकी प्रकृति बदल रही है और उससे बनने वाले वाद्ययंत्रों मे वो मधुर स्वर नहीं  पायेगे जो पहले पाते थे।ये एक चिंता का विषय है |पर्यावरण मे बदलाव को सुधारने हेतु कारगर कदम उठाना होगा ,इस हेतु वृक्षारोपण  ज्यादा करे एवं  हरे भरे वृक्षों को कटने ना दे,|ताकि वाद्ययंत्रों मे वो मधुर स्वर और ऋतु चक्र सही हो सके|पृथ्वी को बचाने के लिए कुछ तो हमें करना होगा| पूर्व के वर्षो में जलवायु पर हुए  डरबन  अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन मे जलवायु परिवर्तन के संबध मे किसी ठोस नतीजे पर नहीं पहुच पाने से जनाक्रोश भी  उभर कर सामने आया था|आर आर इ  के अनुसार सन २०३० अंत गाज उष्ण देशीय (ट्रापिकल ) जंगलों पर गिरेगी जो की पर्यावरण के हिसाब से गंभीर एवं चिंतनीय पहलू  है| अधिक जंगल काटने से ज्यादा कार्बन उत्सर्जन .अधिक मौसम परिवर्तन और सबके लिये कम संपन्नता ही प्राप्त होगी |ये सर्वविदित है कि वृक्षों से ताप का नियंत्रण होता और वायुमंडल की विषाक्तता भी कम होती है |जितने अधिक वृक्ष होगें वातावरण उतना ही शुद्ध एवं स्वच्छ होगा |वृक्षों होने से वन्य प्राणियों की जीवन सुखद होगा |भविष्य में हरित क्रांति को विलुप्त होने से बचाने हेतु वर्षा ऋतु के समय  वृक्षारोपण के पुनीत कार्य  में भागीदारी निभाने की सोच विकसित करें|लोक कला के त्योहारों में पर्यावरण पक्ष जुड़ा है |लोककलाओं की संस्थाए में बड़ी संख्या में लड़कियाँ एकत्रित होकर संजा बनाती है। छत्तीसगढ़ ,बुंदेलखंड क्षेत्र में लड़किया झाड़ की पत्तियाँ को विशेषकर नीबू को ओढ़नी उड़ाकर फूलों से सहेजने की प्रक्रिया को वे मामुलिया बोलते है पर्व मनाते है।लोक गीतों और कलाकृतियों को बचाने में कई स्थानों पर संजा उत्सव संस्थाए  पुनीत और प्रेरणादायी कार्य कर रही है|जो की प्रशंसनीय है।मधुर लोक गीतों की स्वर लहरियाँ घर घर में गुंजायमान होती है।वर्तमान में संजा का रूप फूल -पत्तियों से कागज में तब्दील होता जा रहा है।संजा का पर्व आते ही लड़कियां प्रसन्न हो जाती है।संजा को कैसे मनाना है ये बातें छोटी लड़कियों को बड़ी लड़कियां बताती है। शहरों में सीमेंट की इमारते और दीवारों पर महँगे पेंट पुते होने, गोबर का अभाव ,लड़कियों का ज्यादा संख्या में एक जगह न हो पाने की वजह ,टी वी ,इंटरनेट का प्रभाव और पढाई की वजह बताने से शहरों में संजा मनाने का चलन ख़त्म सा हो गया है ।लेकिन गांवों /देहातो में पर्यावरण के हित में पेड़ों की पत्तियाँ ,तरह तरह के फूल ,रंगीन कागज ,गोबर आदि की सहज उपलब्धता से ये पर्व मनाना शहर की तुलना में आसान है।परम्परा को आगे बढ़ाने की सोच में बेटियों की कमी से भी इस पर्व पर प्रभाव पढ़ा है।संजा पर्व एक पाठशाला है |संजा से कला का ज्ञान प्राप्त होता है ,पशु -पक्षियों की आकृति बनाना और उसे दीवारों पर चिपकाना। गोबर से संजा माता को सजाना और किला कोट जो संजा के अंतिम दिन में बनाया जाता है उसमे पत्तियों ,फूलों और रंगीन कागज से सजाने पर संजा बहुत सुन्दर लगती है | संजा को नदी में विसर्जन किया जाता है।ये पर्यावरण की हितेषी है।इसको जल में प्रवाहित करने पर नदी प्रदूषित नहीं होती। चलते हुए राहगीरों के पग रुक से जाते। संजा सीधे- सीधे हमें पर्यावरण से ,अपने परिवेश से जोड़ती है ,
पर्यावरण के बिना सब 'धरा' रह जाएगा 
गर्मी में आसरा तलाशते राहगीर
कभी खुद को तो
 कभी अपने वाहनों को 
धूप से बचाने की चिंता में 
जैसे हो रहे हो दुबले। 
तपिश झेलता वृक्ष 

बांधी जाती वृक्ष पर मान -मन्नते 
लगाए जाते लम्बी उम्र होने के
प्रार्थना के फेरे।
वृक्ष से ही 
लोग आज भी बताते पते 
वृक्ष कुछ न कुछ हम सब को 
देता ही आया
लेकिन माँगा न उसने हमसे कभी।

अंतिम पड़ाव का साथी बनकर 
जो खुद साथ जलकर साथ निभाता रहा
वृक्षों को बचाना और लगाना होगा 
यदि नहीं बचाया तो 
सब धरा रह जाएगा 
पर्यावरण जब होगा खत्म
तब प्राणवायु भी बाजारों में
बिकने लगेगी महंगी।

संजय वर्मा "दृष्टि "
125 ,बलिदानी भगत सिंह मार्ग 
मनावर जिला -धार (म प्र )

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